आप सभी को सादर प्रणाम और मंगलकामनाएँ! भगवान विश्वकर्मा, जो सृष्टि के निर्माता और समस्त शिल्प के अधिपति माने जाते हैं, उनकी उपासना हमारे जीवन में समृद्धि और सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है।
विश्वकर्मा चालीसा का नियमित पाठ करने से कार्यों में आने वाली सभी बाधाओं का निवारण होता है और व्यवसाय या कार्यक्षेत्र में उन्नति मिलती है। चालीसा पाठ से पहले भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित करें और पुष्प अर्पित करें। यह पूजा विधि आपको भगवान की कृपा प्राप्त करने का सशक्त माध्यम है।
आइये, हम सब मिलकर भगवान विश्वकर्मा का स्मरण कर इस चालीसा का पाठ करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सुख और समृद्धि से भरपूर बनाएं।
जय भगवान विश्वकर्मा!
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॥ दोहा ॥
श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं, चरणकमल धरिध्यान ।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण, दीजै दया निधान ॥
॥ चौपाई ॥
जय श्री विश्वकर्म भगवाना ।
जय विश्वेश्वर कृपा निधाना ॥
शिल्पाचार्य परम उपकारी ।
भुवना-पुत्र नाम छविकारी ॥
अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर ।
शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर ॥
अद्भुत सकल सृष्टि के कर्ता ।
सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता ॥ ४ ॥
अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं ।
कोई विश्व मंह जानत नाही ॥
विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा ।
अद्भुत वरण विराज सुवेशा ॥
एकानन पंचानन राजे ।
द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे ॥
चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे ।
वारि कमण्डल वर कर लीन्हे ॥ ८ ॥
शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा ।
सोहत सूत्र माप अनुरूपा ॥
धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे ।
नौवें हाथ कमल मन मोहे ॥
दसवां हस्त बरद जग हेतु ।
अति भव सिंधु मांहि वर सेतु ॥
सूरज तेज हरण तुम कियऊ ।
अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ ॥ १२ ॥
चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका ।
दण्ड पालकी शस्त्र अनेका ॥
विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं ।
अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं ॥
इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा ।
तुम सबकी पूरण की आशा ॥
भांति-भांति के अस्त्र रचाए ।
सतपथ को प्रभु सदा बचाए ॥ १६ ॥
अमृत घट के तुम निर्माता ।
साधु संत भक्तन सुर त्राता ॥
लौह काष्ट ताम्र पाषाणा ।
स्वर्ण शिल्प के परम सजाना ॥
विद्युत अग्नि पवन भू वारी ।
इनसे अद्भुत काज सवारी ॥
खान-पान हित भाजन नाना ।
भवन विभिषत विविध विधाना ॥ २० ॥
विविध व्सत हित यत्रं अपारा ।
विरचेहु तुम समस्त संसारा ॥
द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका ।
विविध महा औषधि सविवेका ॥
शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला ।
वरुण कुबेर अग्नि यमकाला ॥
तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ ।
करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ ॥ २४ ॥
भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका ।
कियउ काज सब भये अशोका ॥
अद्भुत रचे यान मनहारी ।
जल-थल-गगन मांहि-समचारी ॥
शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही ।
विज्ञान कह अंतर नाही ॥
बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा ।
सकल सृष्टि है तव विस्तारा ॥ २८ ॥
रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा ।
तुम बिन हरै कौन भव हारी ॥
मंगल-मूल भगत भय हारी ।
शोक रहित त्रैलोक विहारी ॥
चारो युग परताप तुम्हारा ।
अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा ॥
ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता ।
वर विज्ञान वेद के ज्ञाता ॥ ३२ ॥
मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा ।
सबकी नित करतें हैं रक्षा ॥
पंच पुत्र नित जग हित धर्मा ।
हवै निष्काम करै निज कर्मा ॥
प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई ।
विपदा हरै जगत मंह जोई ॥
जै जै जै भौवन विश्वकर्मा ।
करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा ॥ ३६ ॥
इक सौ आठ जाप कर जोई ।
छीजै विपत्ति महासुख होई ॥
पढाहि जो विश्वकर्म-चालीसा ।
होय सिद्ध साक्षी गौरीशा ॥
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे ।
हो प्रसन्न हम बालक तेरे ॥
मैं हूं सदा उमापति चेरा ।
सदा करो प्रभु मन मंह डेरा ॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
करहु कृपा शंकर सरिस, विश्वकर्मा शिवरूप ।
श्री शुभदा रचना सहित, ह्रदय बसहु सूर भूप ॥
विश्वकर्मा के बारे में
भगवान विश्वकर्मा हिंदू धर्म में सृजन, निर्माण, वास्तुकला, औजार, शिल्पकला, मूर्तिकला एवं वाहनों समेत समस्त संसारिक वस्तुओं के अधिष्ठाता देवता माने जाते हैं। वे देव शिल्पी, जगतकर्ता और शिल्पेश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। उनका निवास स्थान विश्वकर्मा लोक है और उनके प्रमुख प्रतीक औजार होते हैं। उनके माता-पिता वास्तुदेव और अंगिरसी हैं, और उनके संतान बृहस्मति, नल-निल, संध्या, रिद्धि, सिद्धि, और चित्रांगदा हैं। हर साल 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
वेदों में उल्लेख: वेदों में भगवान विश्वकर्मा का महत्वपूर्ण स्थान है। ऋग्वेद में विश्वकर्मा सुक्त के रूप में 11 ऋचाएँ लिखी गई हैं, जिनमें उनके सृजन और निर्माण की शक्ति का वर्णन है। वेदों में उन्हें प्रजापति का भी विशेषण दिया गया है, जो उनके सर्वव्यापकता और सर्वज्ञता को दर्शाता है।
आश्चर्यजनक वास्तुकार: भगवान विश्वकर्मा को चारों युगों में अद्वितीय वास्तुकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। सत्ययुग में उन्होंने स्वर्गलोक का निर्माण किया, त्रेता युग में लंका, द्वापर में द्वारका, और कलियुग के आरम्भ में हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया। इसके अलावा, उन्होंने जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मंदिर में स्थित विशाल मूर्तियों (कृष्ण, सुभद्रा और बलराम) का भी निर्माण किया।
विश्वकर्मा जयंती: विश्वकर्मा जयंती हिंदू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को समर्पित त्योहार है। यह भाद्र मास के अंतिम दिन, विशेष रूप से भद्रा संक्रांति पर मनाई जाती है, जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस दिन विशेष रूप से इंजीनियर, वास्तुकार और शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं और अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति और समृद्धि की कामना करते हैं।
विश्वकर्मा चालीसा पढ़ने की विधि
विश्वकर्मा चालीसा पढ़ने की कोई विशेष विधि निर्धारित नहीं है। आप इसे अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार किसी भी समय पढ़ सकते हैं। हालांकि, कुछ लोग निम्नलिखित तरीके अपनाते हैं:
- शांत वातावरण: चालीसा पढ़ने के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
- ध्यान: पढ़ने से पहले कुछ पल ध्यान करें ताकि आपका मन एकाग्र हो।
- भाव: चालीसा के प्रत्येक शब्द को ध्यान से पढ़ें और उसका अर्थ समझने का प्रयास करें।
- भावना: विश्वकर्मा जी के प्रति श्रद्धा और भक्ति के साथ चालीसा पढ़ें।
- पूजा: आप विश्वकर्मा जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाकर और फूल चढ़ाकर चालीसा का पाठ कर सकते हैं।
कुछ अतिरिक्त सुझाव:
- नियमित पाठ: नियमित रूप से चालीसा का पाठ करने से मन शांत होता है और आध्यात्मिक विकास होता है।
- मनोकामना: चालीसा के अंत में आप विश्वकर्मा जी से अपनी मनोकामनाएं मांग सकते हैं, खासकर यदि आप किसी कला या शिल्प से जुड़े हैं।
- शुद्ध मन: चालीसा पढ़ते समय मन को शुद्ध रखें और किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
- विधि-विधान: आप किसी पंडित या धार्मिक गुरु से चालीसा पढ़ने की विधि के बारे में विस्तृत जानकारी ले सकते हैं।
विश्वकर्मा चालीसा का महत्त्व
- कारीगरों का आशीर्वाद: विश्वकर्मा जी सभी कारीगरों के आराध्य देवता हैं। चालीसा पढ़ने से उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- कला और शिल्प का विकास: यह कला और शिल्प के विकास में मदद करता है।
- नए निर्माण का शुभ आरंभ: किसी भी नए निर्माण कार्य का शुभारंभ करने से पहले चालीसा पढ़ना शुभ माना जाता है।
- समस्याओं का समाधान: यह विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान करने में मदद करता है।
विश्वकर्मा चालीसा के लाभ
- मन की शांति: यह मन को शांत और स्थिर करता है।
- तनाव मुक्ति: यह तनाव और चिंता को कम करता है।
- नकारात्मक विचारों से मुक्ति: यह नकारात्मक विचारों को दूर करता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: यह सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।