प्रिय भक्तजनों, सर्वप्रथम, आप सभी को हार्दिक प्रणाम और शुभकामनाएँ। इस पावन अवसर पर, मैं आपका स्वागत करता हूँ और आपके स्वास्थ्य, समृद्धि, और सुख-शांति की प्रार्थना करता हूँ।
ॐ श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥
श्रीकृष्ण, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं और जिनकी लीला और महिमा अनंत हैं, उनकी आराधना से हमें अपार शांति और आनंद की प्राप्ति होती है। श्रीकृष्ण के नाम का स्मरण और उनकी चालीसा का पाठ हमें सभी कष्टों से मुक्त करता है और हमारे जीवन में प्रेम, भक्ति और समृद्धि लाता है।
आईये, हम सब मिलकर श्रीकृष्ण चालीसा का पवित्र पाठ करें और उनके दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य बनाएं। श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करते हुए, हम उनकी कृपा और प्रेम की अनुभूति करेंगे, जिससे हमारा मन और आत्मा शुद्ध और पवित्र हो जाएंगे।
जय श्रीकृष्ण!
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॥ दोहा ॥
बंशी शोभित कर मधुर ,नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्ब फल,नयन कमल अभिराम ।।
पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख,पीताम्बर शुभ साज।
जय मन मोहन मदन छबि ,कृष्णचंद्र महाराज।।
|| चौपाई ||
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर नाग नथइया।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।
आओ दीनन कष्ट निवारो॥
बंशी मधुर अधर धरि टेरी।
होवे पूर्ण विनय यह मेरी ।।
आओ हरि पुनि माखन चाखो।
आज लाज भक्तन की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला।
मोर मुकुट वैजन्तीमाला ॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।
कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।
छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो।
अका बका कागासुर मारयो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला ।
भय शीतल लखतहिं नंदलाला ।।
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई ।
मूसर धार वारि बरसाई ।।
लगत लगत व्रज चहन बहायो ।
गोवर्धन नख धारि बचायो ।।
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।
मुख मँह चौदह भुवन दिखाई ।।
दुष्ट कंस अति उधम मचायो।
कोटि कमल जब फूल मंगायो।।
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।
चरण चिन्ह दे निर्भय कीन्हें ॥।
करि गोपिन संग रास विलासा।
सबकी पूरण करि अभिलाषा ।।
अगणित महा असुर संहारयो।
कंसहि केस पकड़ दै मारयो ।
मात पिता की बन्दि छुड़ायो।
उग्रसेन कहँ राज दिलायो ।।
महि से मृतक छहों सुत लायो।
मातु देवकी शोक मिटायो।।
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।
लाये षट दश सहसकुमारी ।।
दें भीमहिं तृण चीर सहारा ।
जरासिंधु राक्षस कहँ मारा ।।
असुर बकासुर आदिक मारयो ।
भक्तन के तब कष्ट निवारयो ।।
दीन सुदामा के दुःख टारयो।
तंदुल तीन मूंठि मुख डारयो ।।
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।
दुर्योधन के मेवा त्यागे ।।
लखी प्रेम की महिमा भारी।
ऐसे श्याम दीन हितकारी ।।
मारथ के पारथ रथ हाँके ।
लिये चक्र कर नहिं बल थाके ।।
निज गीता के ज्ञान सुनाए।
भक्तन हृदय सुधा वर्षाए।।
मीरा थी ऐसी मतवाली।
विष पी गई बजाकर ताली ।।
राणा भेजा सांप पिटारी ।
शालीग्राम बने बनवारी ।।
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।
उरते संशय सकल मिटायो ।।
तब शत निन्दा करि तत्काला।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ।।
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।
दीनानाथ लाज अब जाई ।।
तुरतहि बसन बने नंदलाला ।।
बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ।।
अस अनाथ के नाथ कन्हैया ।
डूबत भंवर बचावत नइया ।।
सुन्दरदास आस उर धारी।
दया दृष्टि कीजै बनवारी ।।
नाथ सकल मम कुमति निवारो ।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो ।।
खोलो पट अब दर्शन दीजै ।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ।।
॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥
श्री कृष्ण: दयालु और संरक्षक
श्री कृष्ण हिंदू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं और उन्हें भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में माना जाता है। वे करुणा, ज्ञान, और प्रेम के प्रतीक हैं। श्रीकृष्ण को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे कन्हैया, माधव, श्याम, गोपाल, केशव, वासुदेव आदि। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था और उन्हें उस युग का युगपुरुष भी कहा जाता है।
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मथुरा के कारागार में हुआ था। वे देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे। उनकी माँ देवकी कंस की बहन थी, और कंस ने भविष्यवाणी सुनी थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसे मारेगा। इस भविष्यवाणी से डरकर कंस ने देवकी और वासुदेव को जेल में डाल दिया, जहाँ श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। वासुदेव ने नवजात कृष्ण को गोकुल में यशोदा और नंद बाबा के पास पहुँचा दिया, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ।
बाल्यावस्था में ही कृष्ण ने कई अद्भुत कार्य किए जैसे पूतना, शकटासुर, और तृणावर्त जैसे राक्षसों का वध। उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की और रासलीला का आयोजन किया। उन्होंने मथुरा में अपने मामा कंस का वध भी किया।
कृष्ण का जीवन और उनकी लीलाएं महाभारत और भागवत पुराण जैसे प्रमुख हिंदू ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं। महाभारत के युद्ध में वे अर्जुन के सारथी बने और युद्ध भूमि में उन्हें भगवद्गीता का उपदेश दिया, जो आज भी विश्वभर में प्रसिद्ध है। उनके उपदेशों के लिए उन्हें जगतगुरु का सम्मान प्राप्त हुआ।
कृष्ण ने द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ से पांडवों की सहायता की। उनका जीवनकाल 124 वर्षों का था और उन्होंने अंततः अपनी लीला समाप्त की। कृष्ण की कथा और उनके व्यक्तित्व का प्रभाव आज भी हिंदू धर्म में गहराई से विद्यमान है, और वे अनंत काल तक पूजनीय बने रहेंगे।
श्री कृष्ण चालीसा पढ़ने की विधि
श्री कृष्ण चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करना चाहिए। पाठ करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेना चाहिए। एक शांत स्थान पर बैठकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके दीपक जलाकर श्री कृष्ण का ध्यान करें। इसके बाद चालीसा का पाठ प्रारंभ करें। चालीसा का पाठ करते समय मन में श्री कृष्ण के रूप का ध्यान लगाए रखें।
पाठ करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:
- चालीसा का पाठ एकाग्रचित होकर करना चाहिए।
- पाठ करते समय किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना चाहिए।
- पाठ के दौरान मन में कोई भी नकारात्मक विचार नहीं लाना चाहिए।
श्री कृष्ण चालीसा का महत्व
श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के मन में शांति और स्थिरता आती है। यह चालीसा व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाती है। श्री कृष्ण की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलती है। यह चालीसा व्यक्ति को सभी प्रकार की समस्याओं से बचाती है।
श्री कृष्ण चालीसा के लाभ
- मोक्ष की प्राप्ति: श्री कृष्ण की कृपा से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- सभी कष्टों से मुक्ति: श्री कृष्ण सभी प्रकार के कष्टों से रक्षा करते हैं।
- रोगों से मुक्ति: श्री कृष्ण की कृपा से व्यक्ति सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है।
- मन की शांति: श्री कृष्ण का पाठ करने से मन शांत होता है।
- ज्ञान की प्राप्ति: श्री कृष्ण ज्ञान के सागर हैं, उनके पाठ से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
कब करें श्री कृष्ण चालीसा का पाठ?
- जन्माष्टमी के दिन
- गुरुवार के दिन
- किसी भी शुभ कार्य से पहले
- किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए
- रोजाना सुबह या शाम
निष्कर्ष
श्री कृष्ण चालीसा का पाठ बहुत ही पुण्यदायी है। इस चालीसा का नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में कई लाभ प्राप्त होते हैं। यदि आप भी श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो आप श्री कृष्ण चालीसा का पाठ नियमित रूप से करें।