प्रिय भक्तजन, आप सभी को सादर नमस्कार और शुभकामनाएँ। इस पावन अवसर पर, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ और आपके स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्रार्थना करता हूँ।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
माँ सरस्वती, जो विद्या, बुद्धि और संगीत की देवी हैं, उनकी आराधना से हमें ज्ञान, बुद्धि और आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है। माँ सरस्वती की कृपा से हमारे जीवन के सभी कष्ट और विघ्न दूर होते हैं और हमें विवेक, समझदारी और आत्मिक संतुलन मिलता है। सरस्वती चालीसा का पाठ करने से हमारे जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि आती है।
सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्या देहि नमोऽस्तुते॥
आइये, हम सब मिलकर श्री सरस्वती चालीसा का पवित्र पाठ करें और माँ सरस्वती के दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को ज्ञानमय और मंगलमय बनाएं। उनकी महिमा का गुणगान करते हुए, हम उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि की प्राप्ति करेंगे।
जय माँ सरस्वती!
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|| दोहा ||
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
|| चौपाई ||
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।
करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता।
सकल विश्व अंदर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।
जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥4
तबहि मातु ले निज अवतारा।
पाप हीन करती महि तारा॥
बाल्मीकि जी थे बहम ज्ञानी ।
तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई।
आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।
तेरी कृपा दृष्टि से माता॥8
तुलसी सूर आदि विद्धाना ।
भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा।
केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहुता ।
तेहि न धरइ चित्त सुंदर माता॥12
राखु लाज जननी अब मेरी।
विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
कृपा करउ जय जय जगदंबा ॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना।
बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा।
फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा ॥16
मातु सहाय भई तेहि काला।
बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी।
सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी ॥20
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।
बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।
छिन में बधे ताहि तू अम्बा ॥
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई।
रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा।
सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा ॥24
को समरथ तव यश गुन गाना।
निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी ॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी।
नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥28
दुर्ग आदि हरनी तू माता।
कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै।
कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
हो दरिद्र अथवा संकट में॥32
नाम जपे मंगल सब होई।
संशय इसमें करइ न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।
सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै।
संकट रहित अवश्य हो जावै॥36
भक्ति मातु की करै हमेशा।
निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा।
बंदी पाश दूर हो सारा॥
मोहे जान अज्ञनी भवानी।
कीजै कृपा दास निज जानी ॥
॥ दोहा ॥
माता सूरज कांति तव, अंधकार मम रूप।
डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु।
मुझ अज्ञानी अधम को, आश्रय देउ पुनातु ॥
श्री सरस्वती चालीसा का परिचय
माता सरस्वती संगीत, कला, वाणी, मातृत्व, आध्यात्मिकता, विद्या, ज्ञान, ग्रंथ, मन्त्र, तंत्र, और नदियों की अधिष्ठात्री देवी हैं। इन्हें मंत्र (दक्षिण मार्ग/वैदिक मार्ग) और तंत्र (वाम मार्ग) की देवी भी माना जाता है।
सरस्वती देवी हिन्दू धर्म की प्रमुख वैदिक और पौराणिक देवियों में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा की पत्नी और विष्णु की पत्नी दोनों को सरस्वती नाम से संबोधित किया गया है, लेकिन दोनों का अलग-अलग स्वरूप माना जाता है। ब्रह्मा पत्नी सरस्वती सतोगुण महाशक्ति और त्रिदेवियों में एक मानी जाती हैं, जबकि विष्णु की पत्नी सरस्वती को ब्रह्मा की जिह्वा से प्रकट माना जाता है।
सरस्वती को संगीत और विद्या की देवी के रूप में पूजा जाता है। ये श्वेतवर्णा हैं, वीणा, पुस्तक और माला उनके हाथों में होती हैं। उनका वाहन राजहंस होता है। वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव के साथ पूजी जाती हैं और इनकी पूजा विशेषतः वसंत पंचमी के दिन की जाती है।
सरस्वती के स्वरूप का वर्णन वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, और विभिन्न पुराणों में मिलता है। सृष्टि के प्रारंभिक काल में ब्रह्मा ने सरस्वती को अपने संकल्प और विष्णु की स्तुति के माध्यम से उत्पन्न किया। देवी सरस्वती की उपासना करने से विद्या, बुद्धि और कला में उत्तमता प्राप्त होती है।
उनके विभिन्न नामों में शारदा, वीणावादिनी, और वीणापाणि शामिल हैं। सरस्वती की आराधना विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी मानी जाती है जो बौद्धिक क्षमता और शिक्षा में वृद्धि चाहते हैं।
श्री सरस्वती चालीसा पढ़ने की विधि
श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष विधि नहीं है। आप इसे किसी भी समय, किसी भी जगह पर पढ़ सकते हैं। हालांकि, गुरुवार के दिन या बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर पाठ करना अधिक फलदायी माना जाता है।
- शांति और एकाग्रता: पाठ करते समय मन को शांत रखें और माता सरस्वती पर ध्यान केंद्रित करें।
- शुद्ध मन: शुद्ध मन से पाठ करना चाहिए।
- विश्वास: माता सरस्वती पर अटूट विश्वास रखें।
श्री सरस्वती चालीसा का महत्त्व
श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने से मन शांत होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। यह व्यक्ति को बुद्धि और ज्ञान प्रदान करता है। सरस्वती चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
श्री सरस्वती चालीसा के लाभ
- बुद्धि और ज्ञान: सरस्वती चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- मन की शांति: यह मन को शांत करता है और तनाव को कम करता है।
- सफलता: सरस्वती चालीसा व्यक्ति को जीवन में सफलता दिलाती है।
- कला और संगीत: यह कला और संगीत में रुचि बढ़ाती है।
- बच्चों की शिक्षा: बच्चों को सरस्वती चालीसा सुनाने से उनकी बुद्धि का विकास होता है।
निष्कर्ष
श्री सरस्वती चालीसा एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यदि आप अपने जीवन में ज्ञान, बुद्धि और सफलता चाहते हैं, तो आप श्री सरस्वती चालीसा का पाठ अवश्य करें।
ध्यान दें: किसी भी धार्मिक ग्रंथ का पाठ करते समय, उस ग्रंथ के अर्थ को समझने का प्रयास करना चाहिए। श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करते समय, माता सरस्वती के गुणों और उनके प्रति श्रद्धाभाव रखना महत्वपूर्ण है।