प्रणाम, भक्तजनों! गोपाल, जो भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप हैं, की उपासना से जीवन में भक्ति, प्रेम और आनंद की प्राप्ति होती है। चालीसा का विधिपूर्वक जाप किया जाए, तो व्यक्ति को हर काम में सफलता प्राप्त होती है और उत्तम संतान का भी वरदान मिलता है। इसके साथ ही संतान के जीवन में आने वाली हर समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
विजयेन युतो रथस्थित: प्रसभानीय समुद्र मध्यत:।
प्रददत्त नयान् द्विजन्मने स्मरणीयो वसुदेव नंदन:।।
गोपाल चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में भक्ति और प्रेम की वृद्धि होती है। इस चालीसा का पाठ करते समय भगवान गोपाल की प्रतिमा के सामने दीप जलाएं और भक्ति भाव से पाठ करें। यह विधि विशेष रूप से उन भक्तों के लिए लाभकारी है जो अपने जीवन में प्रेम और भक्ति की वृद्धि करना चाहते हैं।
आइये, हम सभी भगवान गोपाल की आराधना कर इस चालीसा का पवित्र पाठ करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को प्रेममय और आनंदित बनाएं।
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॥ दोहा ॥
श्री राधापद कमल रज, सिर धरि यमुना कूल।
वरणो चालीसा सरस, सकल सुमंगल मूल॥
॥ चौपाई ॥
जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी।
दुष्ट दलन लीला अवतारी॥
जो कोई तुम्हरी लीला गावै।
बिन श्रम सकल पदारथ पावै॥
श्री वसुदेव देवकी माता।
प्रकट भये संग हलधर भ्राता॥
मथुरा सों प्रभु गोकुल आये।
नन्द भवन में बजत बधाये॥
जो विष देन पूतना आई।
सो मुक्ति दै धाम पठाई॥
तृणावर्त राक्षस संहार्यौ।
पग बढ़ाय सकटासुर मार्यौ॥
खेल खेल में माटी खाई।
मुख में सब जग दियो दिखाई॥
गोपिन घर घर माखन खायो।
जसुमति बाल केलि सुख पायो॥
ऊखल सों निज अंग बँधाई।
यमलार्जुन जड़ योनि छुड़ाई॥
बका असुर की चोंच विदारी।
विकट अघासुर दियो सँहारी॥
ब्रह्मा बालक वत्स चुराये।
मोहन को मोहन हित आये॥
बाल वत्स सब बने मुरारी।
ब्रह्मा विनय करी तब भारी॥
काली नाग नाथि भगवाना।
दावानल को कीन्हों पाना॥
सखन संग खेलत सुख पायो।
श्रीदामा निज कन्ध चढ़ायो॥
चीर हरन करि सीख सिखाई।
नख पर गिरवर लियो उठाई॥
दरश यज्ञ पत्निन को दीन्हों।
राधा प्रेम सुधा सुख लीन्हों॥
नन्दहिं वरुण लोक सों लाये।
ग्वालन को निज लोक दिखाये॥
शरद चन्द्र लखि वेणु बजाई।
अति सुख दीन्हों रास रचाई॥
अजगर सों पितु चरण छुड़ायो।
शंखचूड़ को मूड़ गिरायो॥
हने अरिष्टा सुर अरु केशी।
व्योमासुर मार्यो छल वेषी॥
व्याकुल ब्रज तजि मथुरा आये।
मारि कंस यदुवंश बसाये॥
मात पिता की बन्दि छुड़ाई।
सान्दीपनि गृह विद्या पाई॥
पुनि पठयौ ब्रज ऊधौ ज्ञानी।
प्रेम देखि सुधि सकल भुलानी॥
कीन्हीं कुबरी सुन्दर नारी।
हरि लाये रुक्मिणि सुकुमारी॥
भौमासुर हनि भक्त छुड़ाये।
सुरन जीति सुरतरु महि लाये॥
दन्तवक्र शिशुपाल संहारे।
खग मृग नृग अरु बधिक उधारे॥
दीन सुदामा धनपति कीन्हों।
पारथ रथ सारथि यश लीन्हों॥
गीता ज्ञान सिखावन हारे।
अर्जुन मोह मिटावन हारे॥
केला भक्त बिदुर घर पायो।
युद्ध महाभारत रचवायो॥
द्रुपद सुता को चीर बढ़ायो।
गर्भ परीक्षित जरत बचायो॥
कच्छ मच्छ वाराह अहीशा।
बावन कल्की बुद्धि मुनीशा॥
ह्वै नृसिंह प्रह्लाद उबार्यो।
राम रुप धरि रावण मार्यो॥
जय मधु कैटभ दैत्य हनैया।
अम्बरीय प्रिय चक्र धरैया॥
ब्याध अजामिल दीन्हें तारी।
शबरी अरु गणिका सी नारी॥
गरुड़ासन गज फन्द निकन्दन।
देहु दरश ध्रुव नयनानन्दन॥
देहु शुद्ध सन्तन कर सङ्गा।
बाढ़ै प्रेम भक्ति रस रङ्गा॥
देहु दिव्य वृन्दावन बासा।
छूटै मृग तृष्णा जग आशा॥
तुम्हरो ध्यान धरत शिव नारद।
शुक सनकादिक ब्रह्म विशारद॥
जय जय राधारमण कृपाला।
हरण सकल संकट भ्रम जाला॥
बिनसैं बिघन रोग दुःख भारी।
जो सुमरैं जगपति गिरधारी॥
जो सत बार पढ़ै चालीसा।
देहि सकल बाँछित फल शीशा॥
॥ छन्द ॥
गोपाल चालीसा पढ़ै नित, नेम सों चित्त लावई।
सो दिव्य तन धरि अन्त महँ, गोलोक धाम सिधावई॥
संसार सुख सम्पत्ति सकल, जो भक्तजन सन महँ चहैं।
‘जयरामदेव’ सदैव सो, गुरुदेव दाया सों लहैं॥
॥ दोहा ॥
प्रणत पाल अशरण शरण, करुणा-सिन्धु ब्रजेश।
चालीसा के संग मोहि, अपनावहु प्राणेश॥
गोपाल चालीसा: भक्ति का अमृत
श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप ‘लड्डू गोपाल’ से जुड़ी एक पौराणिक कहानी है। ब्रज की भूमि पर श्रीकृष्ण के परम भक्त कुम्भनदास रहते थे, जिनका बेटा रघुनंदन बहुत सरल और भोला था। एक दिन कुम्भनदास को कीर्तन के लिए जाना पड़ा, तो उन्होंने अपने बेटे से कहा कि वह श्रीकृष्ण को भोग लगाने के बाद ही भोजन करे।
रघुनंदन ने भोग की थाली श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने रख दी और उसे लगा कि श्रीकृष्ण स्वंय भोजन करेंगे। जब ऐसा नहीं हुआ, तो रघुनंदन रोने लगा और प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने बाल रूप धारण कर भोजन ग्रहण किया। बाद में, जब कुम्भनदास ने स्वंय देखा कि श्रीकृष्ण बाल स्वरूप में लड्डू खा रहे हैं, तो वे आश्चर्यचकित हो गए। इस घटना के बाद से श्रीकृष्ण के इस बाल स्वरूप की पूजा ‘लड्डू गोपाल’ के रूप में की जाने लगी।
गोपाल चालीसा पढ़ने की विधि
- शुद्ध मन से: चालीसा का पाठ करते समय मन को शांत और एकाग्र रखें।
- श्रद्धा के साथ: भगवान कृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास रखें।
- सच्चे मन से: हर चौपाई का अर्थ समझते हुए पाठ करें।
- नियमित रूप से: प्रतिदिन या सप्ताह में एक बार निश्चित समय पर पाठ करने का प्रयास करें।
- पूजा के समय: भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाकर और धूप-अगरबत्ती दिखाकर पाठ करें।
गोपाल चालीसा का महत्त्व
- मन की शांति: चालीसा का पाठ मन को शांत और तनावमुक्त बनाता है।
- भावनात्मक संतुलन: यह भावनात्मक संतुलन स्थापित करने में मदद करता है।
- आध्यात्मिक विकास: भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति बढ़ाकर आध्यात्मिक विकास होता है।
- मनोकामनाओं की पूर्ति: सच्चे मन से किए गए पाठ से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- सकारात्मक ऊर्जा: यह सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
गोपाल चालीसा के लाभ
- मनोकामनाओं की पूर्ति: भगवान कृष्ण की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- संकटों से मुक्ति: जीवन के सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।
- सुख-शांति: जीवन में सुख-शांति का अनुभव होता है।
- आत्मविश्वास: आत्मविश्वास बढ़ता है।
- सकारात्मक सोच: सकारात्मक सोच विकसित होती है।
गोपाल चालीसा का पाठ करने से भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह चालीसा सभी उम्र के लोगों के लिए लाभदायक है।