प्रिय भक्तजन, राधे-राधे! आप सभी को हार्दिक प्रणाम और शुभकामनाएँ। गिरिराज महाराज की आराधना के इस पावन अवसर पर, मैं आपका स्वागत करता हूँ और आपके जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्रार्थना करता हूँ। गिरिराज, जिन्हें गोवर्धन पर्वत के रूप में भी जाना जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय हैं और उनकी कृपा से जीवन के सभी संकट और बाधाएँ दूर होती हैं।
शास्त्रों में वर्णित है:
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।
इस श्लोक का स्मरण करते हुए, हम गिरिराज महाराज के चरणों में अपनी भक्ति अर्पित करते हैं और उनकी कृपा से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और शांति प्राप्त करते हैं। गिरिराज चालीसा का पाठ न केवल हमारे मन को शांति और संतोष प्रदान करता है, बल्कि हमें भगवान श्रीकृष्ण के असीम प्रेम और कृपा का अनुभव कराता है।
आइये, हम सभी मिलकर गिरिराज चालीसा का पवित्र पाठ करें और गिरिराज महाराज के दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को मंगलमय बनाएं। उनकी महिमा का गुणगान करते हुए, हम उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति करेंगे।
जय गिरिराज महाराज!
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|| दोहा ||
बन्दहुँ वीणा वादिनी धरि गणपति को ध्यान |
महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ||
सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार |
बरनौ श्रीगिरिराज यश, निज मति के अनुसार ||
|| चौपाई ||
जय हो जय बंदित गिरिराजा |
ब्रज मण्डल के श्री महाराजा ||
विष्णु रूप तुम हो अवतारी |
सुन्दरता पै जग बलिहारी ||
स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें |
सुर मुनि गण दरशन कूं आवें ||
शांत कंदरा स्वर्ग समाना |
जहाँ तपस्वी धरते ध्याना ||
द्रोणगिरि के तुम युवराजा |
भक्तन के साधौ हौ काजा ||
मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये |
जोर विनय कर तुम कूं लाये ||
मुनिवर संघ जब ब्रज में आये |
लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये ||
विष्णु धाम गौलोक सुहावन |
यमुना गोवर्धन वृन्दावन ||
देख देव मन में ललचाये |
बास करन बहुत रूप बनाये ||
कोउ बानर कोउ मृग के रूपा |
कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा ||
आनन्द लें गोलोक धाम के |
परम उपासक रूप नाम के ||
द्वापर अंत भये अवतारी |
कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी ||
महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी |
पूजा करिबे की मन में ठानी ||
ब्रजवासी सब के लिये बुलाई |
गोवर्धन पूजा करवाई ||
पूजन कूं व्यंजन बनवाये |
ब्रजवासी घर घर ते लाये ||
ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी |
सहस भुजा तुमने कर लीनी ||
स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में |
मांग मांग के भोजन पावें ||
लखि नर नारि मन हरषावें |
जै जै जै गिरिवर गुण गावें ||
देवराज मन में रिसियाए |
नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए ||
छाया कर ब्रज लियौ बचाई |
एकउ बूंद न नीचे आई ||
सात दिवस भई बरसा भारी |
थके मेघ भारी जल धारी ||
कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे |
नमो नमो ब्रज के रखवारे ||
करि अभिमान थके सुरसाई |
क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई ||
त्राहि माम मैं शरण तिहारी |
क्षमा करो प्रभु चूक हमारी ||
बार बार बिनती अति कीनी |
सात कोस परिकम्मा दीनी ||
संग सुरभि ऐरावत लाये |
हाथ जोड़ कर भेंट गहाए ||
अभय दान पा इन्द्र सिहाये |
करि प्रणाम निज लोक सिधाये ||
जो यह कथा सुनैं चित लावें |
अन्त समय सुरपति पद पावैं ||
गोवर्धन है नाम तिहारौ |
करते भक्तन कौ निस्तारौ ||
जो नर तुम्हरे दर्शन पावें |
तिनके दुख दूर ह्वै जावे ||
कुण्डन में जो करें आचमन |
धन्य धन्य वह मानव जीवन ||
मानसी गंगा में जो नहावे |
सीधे स्वर्ग लोक कूं जावें ||
दूध चढ़ा जो भोग लगावें |
आधि व्याधि तेहि पास न आवें ||
जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें |
मन वांछित फल निश्चय पावें ||
जो नर देत दूध की धारा |
भरौ रहे ताकौ भण्डारा ||
करें जागरण जो नर कोई |
दुख दरिद्र भय ताहि न होई ||
श्याम शिलामय निज जन त्राता |
भक्ति मुक्ति सरबस के दाता ||
पुत्रहीन जो तुम कूं ध्यावें |
ताकूं पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें ||
दण्डौती परिकम्मा करहीं |
ते सहजहिं भवसागर तरहीं ||
कलि में तुम सक देव न दूजा |
सुर नर मुनि सब करते पूजा ||
|| दोहा ||
जो यह चालीसा पढ़ै, सुनै शुद्ध चित्त लाय ।
सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करै सहाय ||
क्षमा करहुँ अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज |
श्याम बिहारी शरण में, गोवर्धन महाराज ||
गोबर्धन पर्वत (गिरिराज) के बारे में
गोवर्धन पर्वत, उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक पवित्र पहाड़ी है। यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली ब्रज भूमि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस पर्वत का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है और यह हिंदू धर्म में विशेष पूजा का स्थान है।
गोवर्धन पर्वत की सबसे प्रसिद्ध कहानी भगवान श्री कृष्ण द्वारा इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए पर्वत को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाने की है। यह घटना द्वापर युग में हुई थी, जब इंद्र ने ब्रजवासियों को बारिश से पीड़ित करने का फैसला किया था। कृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सात दिनों तक उसे अपनी अंगुली पर थामे रखा। इस घटना के बाद गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण का प्रतीक माना जाने लगा।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा भी हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस परिक्रमा को करने से भक्तों को पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होता है। गोवर्धन पर्वत पर कई मंदिर और तीर्थ स्थान भी हैं, जैसे कि गोवर्धन गिरिराज मंदिर, कुंडी मंदिर, और मां गौरा देवी मंदिर।
गोवर्धन पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता भी देखने लायक है। पर्वत के चारों ओर हरियाली फैली हुई है और वहां कई झीलें और तालाब भी हैं। गोवर्धन पर्वत पर कई पर्यटन स्थल भी हैं, जैसे कि गोवर्धन पार्क, गोवर्धन चिड़ियाघर, और गोवर्धन जलप्रपात।
गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता इसे उत्तर प्रदेश के सबसे पवित्र और आकर्षक स्थलों में से एक बनाती है। यह पर्वत हिंदू धर्म के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षक जगह है।