प्रिय भक्तजन, ॐ गं गणपतये नमः ! आप सभी को हार्दिक प्रणाम और शुभकामनाएँ। इस पवित्र अवसर पर, मैं आपका स्वागत करता हूँ और आपके स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्रार्थना करता हूँ |
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
भगवान गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता और विद्या के प्रतीक माना जाता है, उनकी कृपा से हमें सभी कार्यों में सफलता मिलती है और हमारे जीवन में शांति और समृद्धि आती है। गणेश चालीसा का पाठ करने से हमारे हृदय में सुख और शांति की प्राप्ति होती है और हम उनकी कृपा से सभी प्रकार के बाधाओं से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
आइये, हम सब मिलकर गणेश चालीसा का पवित्र पाठ करें और भगवान गणेश के दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को मंगलमय बनाएं। उनकी महिमा का गुणगान करते हुए, हम उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में सफलता, सुख और समृद्धि की प्राप्ति करेंगे।
गणपति बाप्पा मोरया!
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॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायक बुद्धि विधाता ॥
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥
कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥
॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा,पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,लहे जगत सन्मान ॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो,मंगल मूर्ती गणेश ॥
श्री गणेश: विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता
श्री गणेश, जिन्हें गणपति, विनायक, और लंबोदर के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के सबसे प्रसिद्ध और पूजनीय देवताओं में से एक हैं। वे नई शुरुआत, समृद्धि, बुद्धि और सफलता के देवता माने जाते हैं और जीवन से बाधाओं को दूर करने वाले भगवान के रूप में पूजे जाते हैं। उनकी पूजा भारत के साथ-साथ जैन, बौद्ध और विश्वभर के अनुयायियों द्वारा भी की जाती है।
श्री गणेश का स्वरूप और प्रतीक
श्री गणेश के चार हाथ होते हैं, जिनमें वे पाश, अंकुश, मोदक पात्र, और वरमुद्रा धारण करते हैं। उनका एक दांत (एकदंत) है, जो एकाग्रता का प्रतीक है। गणेश जी के बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति और सूक्ष्म दृष्टि का प्रतीक हैं, जबकि उनकी सूंड महाबुद्धित्व की द्योतक है। उनका बड़ा पेट उदारता और संपूर्ण स्वीकार को दर्शाता है।
गणेश जी का वाहन मूषक है, जो उन रस्सियों को काटता है जो हमें बंधन में रखते हैं। यह अज्ञान की परतों को काटने और ज्ञान को प्रत्यक्ष करने का प्रतीक है। उनके प्रतीकों में स्वस्तिक और मोदक प्रमुख हैं। वे बुधवार और चतुर्थी के दिन विशेष रूप से पूजे जाते हैं।
गणेश जी का जन्म और महत्त्वपूर्ण कथाएँ
गणेश जी के जन्म की कथा बहुत प्रसिद्ध है। माता पार्वती ने अपने शरीर से मैल निकालकर एक बालक का निर्माण किया, जिसे गणेश कहा गया। भगवान शिव ने बालक का सिर काट दिया, लेकिन माता पार्वती की प्रार्थना पर, शिवजी ने बालक को पुनर्जीवित करने के लिए हाथी का सिर जोड़ दिया और इस प्रकार गणेश जी का जन्म हुआ।
गणेश जी की पूजा करने से बुद्धि, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। गणेश चतुर्थी, गणेश जी का सबसे प्रमुख त्यौहार है, जिसमें उन्हें विधिपूर्वक पूजा जाता है।
श्री गणेश का जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंगों में मस्तक प्रसंग, पृथ्वी प्रदक्षिणा प्रसंग, मूषक वाहन प्राप्ति प्रसंग, गणेश विवाह प्रसंग, महाभारत लेखन प्रसंग आदि शामिल हैं। इन सभी कथाओं में गणेश जी की बुद्धिमत्ता और उनकी दिव्यता का विशेष उल्लेख किया गया है।
गणेश जी का महत्व और पूजा विधि
गणेश जी की पूजा में केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा और मोदक का विशेष महत्त्व है। उनकी पूजा करने से जीवन के सभी कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न होते हैं और समृद्धि एवं सुख की प्राप्ति होती है। उनका बड़ा पेट, हाथ में अंकुश और पाश, और मूषक वाहन, सभी हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं में संतुलन बनाए रखने और ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं।
श्री गणेश की भक्ति हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी बाधाएं आएं, हमें उनसे रुकना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें पार करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। यही कारण है कि गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सिद्धिविनायक’ के रूप में पूजा जाता है।
श्री गणेश चालीसा पढ़ने की विधि
श्री गणेश चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करना चाहिए। पाठ करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेना चाहिए। एक शांत स्थान पर बैठकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके दीपक जलाकर श्री गणेश का ध्यान करें। इसके बाद चालीसा का पाठ प्रारंभ करें। चालीसा का पाठ करते समय मन में श्री गणेश के रूप का ध्यान लगाए रखें।
पाठ करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:
- चालीसा का पाठ एकाग्रचित होकर करना चाहिए।
- पाठ करते समय किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना चाहिए।
- पाठ के दौरान मन में कोई भी नकारात्मक विचार नहीं लाना चाहिए।
श्री गणेश चालीसा का महत्व
श्री गणेश चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के मन में शांति और स्थिरता आती है। यह चालीसा व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाती है। श्री गणेश की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलती है। यह चालीसा व्यक्ति को सभी प्रकार की समस्याओं से बचाती है।
श्री गणेश चालीसा के लाभ
- विघ्न निवारण: श्री गणेश सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करते हैं।
- बुद्धि का विकास: श्री गणेश बुद्धि के देवता हैं, उनके पाठ से बुद्धि का विकास होता है।
- धन लाभ: श्री गणेश की कृपा से व्यक्ति को धन लाभ होता है।
- सुख-शांति: श्री गणेश की कृपा से व्यक्ति को सुख-शांति प्राप्त होती है।
- व्यवसाय में वृद्धि: श्री गणेश की कृपा से व्यक्ति के व्यवसाय में वृद्धि होती है।
कब करें गणेश चालीसा का पाठ?
- बुधवार के दिन
- किसी भी शुभ कार्य से पहले
- किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए
- रोजाना सुबह या शाम
निष्कर्ष
श्री गणेश चालीसा का पाठ बहुत ही पुण्यदायी है। इस चालीसा का नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में कई लाभ प्राप्त होते हैं। यदि आप भी श्री गणेश की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो आप श्री गणेश चालीसा का पाठ नियमित रूप से करें।