प्रणाम, श्रद्धालु भक्तजन! माता शीतला की कृपा आप सभी पर सदैव बनी रहे। माता शीतला, जिन्हें रोगों की देवी माना जाता है, उनकी उपासना से सभी रोगों का नाश होता है और जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि आती है।
शीतला माता चालीसा का पाठ करने से सभी रोग और कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति का संचार होता है। पाठ से पहले शीतला माता की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर, श्रद्धा से चालीसा का पाठ करें। इससे माता की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में हर कार्य सफल होता है।
आइये, हम सभी माता शीतला का स्मरण कर इस चालीसा का पाठ करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को रोग-मुक्त और सुखमय बनाएं।
जय माता शीतला!
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|| दोहा ||
जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान।
होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥
घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार।
शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार ॥
|| चौपाई ||
जय जय श्री शीतला भवानी ।
जय जग जननि सकल गुणधानी ॥
गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती ।
पूरन शरन चंद्रसा साजती ॥
विस्फोटक सी जलत शरीरा ।
शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥
मात शीतला तव शुभनामा ।
सबके काहे आवही कामा ॥
शोक हरी शंकरी भवानी ।
बाल प्राण रक्षी सुखदानी ॥
सूचि बार्जनी कलश कर राजै ।
मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥
चौसट योगिन संग दे दावै ।
पीड़ा ताल मृदंग बजावै ॥
नंदिनाथ भय रो चिकरावै ।
सहस शेष शिर पार ना पावै ॥
धन्य धन्य भात्री महारानी ।
सुर नर मुनी सब सुयश बधानी ॥
ज्वाला रूप महाबल कारी ।
दैत्य एक विश्फोटक भारी ॥
हर हर प्रविशत कोई दान क्षत ।
रोग रूप धरी बालक भक्षक ॥
हाहाकार मचो जग भारी ।
सत्यो ना जब कोई संकट कारी ॥
तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा ।
कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा ॥
विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो ।
मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो ॥
बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा ।
मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा ॥
अब नही मातु काहू गृह जै हो ।
जह अपवित्र वही घर रहि हो ॥
पूजन पाठ मातु जब करी है ।
भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥
अब भगतन शीतल भय जै हे ।
विस्फोटक भय घोर न सै हे ॥
श्री शीतल ही बचे कल्याना ।
बचन सत्य भाषे भगवाना ॥
कलश शीतलाका करवावै ।
वृजसे विधीवत पाठ करावै ॥
विस्फोटक भय गृह गृह भाई ।
भजे तेरी सह यही उपाई ॥
तुमही शीतला जगकी माता ।
तुमही पिता जग के सुखदाता ॥
तुमही जगका अतिसुख सेवी ।
नमो नमामी शीतले देवी ॥
नमो सूर्य करवी दुख हरणी ।
नमो नमो जग तारिणी धरणी ॥
नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी ।
दुख दारिद्रा निस निखंदिनी ॥
श्री शीतला शेखला बहला ।
गुणकी गुणकी मातृ मंगला ॥
मात शीतला तुम धनुधारी ।
शोभित पंचनाम असवारी ॥
राघव खर बैसाख सुनंदन ।
कर भग दुरवा कंत निकंदन ॥
सुनी रत संग शीतला माई ।
चाही सकल सुख दूर धुराई ॥
कलका गन गंगा किछु होई ।
जाकर मंत्र ना औषधी कोई ॥
हेत मातजी का आराधन ।
और नही है कोई साधन ॥
निश्चय मातु शरण जो आवै ।
निर्भय ईप्सित सो फल पावै ॥
कोढी निर्मल काया धारे ।
अंधा कृत नित दृष्टी विहारे ॥
बंधा नारी पुत्रको पावे ।
जन्म दरिद्र धनी हो जावे ॥
सुंदरदास नाम गुण गावत ।
लक्ष्य मूलको छंद बनावत ॥
या दे कोई करे यदी शंका ।
जग दे मैंय्या काही डंका ॥
कहत राम सुंदर प्रभुदासा ।
तट प्रयागसे पूरब पासा ॥
ग्राम तिवारी पूर मम बासा ।
प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा ॥
अब विलंब भय मोही पुकारत ।
मातृ कृपाकी बाट निहारत ॥
बड़ा द्वार सब आस लगाई ।
अब सुधि लेत शीतला माई ॥
|| दोहा ||
यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय ।
सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय ॥
बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू ।
जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू ॥
॥ इति श्री शीतला चालीसा समाप्त॥
शीतला माता के बारे में
शीतला माता एक प्रमुख हिन्दू देवी हैं जिन्हें चेचक और अन्य बीमारियों की देवी के रूप में पूजा जाता है। शीतला माता का जन्म कुम्हार या प्रजापति वंश से माना जाता है और उनकी पूजा का अधिकार भी इसी जाति के पुजारियों को दिया गया है। शीतला माता को विशेष रूप से बच्चों की रक्षक देवी माना जाता है, और उनकी पूजा के माध्यम से चेचक, छोटी माता, फोड़ा, और अन्य रोगों का इलाज चमत्कारिक रूप से किया जाता है।
शीतला माता का संबंध शक्ति के अवतार से है और वे भगवान शिव की पत्नी मानी जाती हैं। उनका वाहन गर्दभ (गधा) है और वे अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू, और नीम के पत्ते धारण करती हैं। ये सभी वस्तुएं प्रतीकात्मक हैं और इनके पीछे स्वच्छता और स्वास्थ्य का महत्व छिपा है।
शीतला माता का सबसे बड़ा मंदिर जयपुर के चाकसू में स्थित “शील की डूंगरी” नामक स्थान पर है, जिसका निर्माण जयपुर के राजा माधो सिंह ने करवाया था। जयपुर के राजपूत समाज और कच्छवाहा राजपूत उन्हें अपनी कुल देवी के रूप में पूजते हैं।
शीतला माता के साथ ज्वरासुर (ज्वर का दैत्य), ओलै चंडी बीबी (हैजे की देवी), चौसठ रोग, घेंटुकर्ण (त्वचा-रोग के देवता), और रक्तवती (रक्त संक्रमण की देवी) का भी उल्लेख मिलता है। इनकी पूजा से चेचक और अन्य बीमारियों के दाग और दोष मिट जाते हैं।
स्कन्द पुराण में शीतला माता की अर्चना का स्तोत्र “शीतलाष्टक” के रूप में मिलता है, जिसे भगवान शिव ने लोकहित में रचा था। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्तों को शीतला माता की महिमा का ज्ञान होता है और उनकी उपासना के लिए प्रेरित किया जाता है। शीतला माता को स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, और उनका पूजा करना हमें सफाई और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करता है।
शीतला माता की पूजा और व्रत के माध्यम से व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग, और शीतला जनित दोष दूर हो जाते हैं। इस कारण शीतला माता की उपासना आज भी हिन्दू समाज में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
शीतला चालीसा पढ़ने की विधि
शीतला चालीसा का पाठ करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए:
- शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शांत वातावरण: एक शांत और एकांत स्थान चुनें।
- पूजा स्थल: एक साफ जगह पर माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- दीपक: दीपक जलाकर माता का ध्यान करें।
- फूल और चढ़ावा: फूल, फल और मिठाई चढ़ाएं।
- मनोयोग: चालीसा का पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और भावनाओं के साथ पाठ करें।
शीतला चालीसा का महत्त्व
शीतला चालीसा का पाठ करने का बहुत महत्व है। माना जाता है कि:
- रोगों से मुक्ति: शीतला चालीसा का नियमित पाठ करने से रोगों से मुक्ति मिलती है।
- शांति: यह मन को शांत और स्थिर करता है।
- आशीर्वाद: माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- सौभाग्य: घर में सुख और समृद्धि आती है।
शीतला चालीसा के लाभ
शीतला चालीसा के कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:
- शारीरिक स्वास्थ्य: रोगों से सुरक्षा मिलती है।
- मानसिक स्वास्थ्य: तनाव और चिंता कम होती है।
- आध्यात्मिक विकास: आत्मिक शक्ति बढ़ती है।
- परिवार का कल्याण: परिवार में सुख-शांति रहती है।
शीतला चालीसा का पाठ करना एक पवित्र अनुष्ठान है जो भक्तों को माता के आशीर्वाद से भर देता है। नियमित रूप से इसका पाठ करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों में सुधार होता है।
अन्य जानकारी:
- शीतला अष्टमी के दिन विशेष रूप से शीतला चालीसा का पाठ किया जाता है।
- शीतला माता को ठंडी चीजें बहुत प्रिय हैं, इसलिए उनके भोग में ठंडी चीजें चढ़ाई जाती हैं।
- शीतला माता को श्वेत वस्त्र बहुत प्रिय हैं।