प्रणाम, श्रद्धालु भक्तों! भगवान परशुराम की महिमा अपरंपार है। भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की उपासना से साहस, शक्ति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।परशुराम चालीसा का पाठ करने से जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
नियमित पाठ से सभी प्रकार की नकारात्मकता दूर होती है और मन को शांति प्राप्त होती है। पाठ से पहले भगवान परशुराम की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित करें और समर्पित भाव से चालीसा का पाठ करें।
आइये, हम सभी भगवान परशुराम जी की आराधना कर इस चालीसा का पाठ करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सफल और सुखमय बनाएं।
जय भगवान परशुराम जी!
Parshuram Chalisa PDF Download करने के लिए, कृपया यहाँ जाएँ – परशुराम चालीसा पीडीऍफ़
॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरण सरोज छवि, निज मन मन्दिर धारि।
सुमरि गजानन शारदा, गहि आशिष त्रिपुरारि।।
बुद्धिहीन जन जानिये, अवगुणों का भण्डार।
बरणौं परशुराम सुयश, निज मति के अनुसार।।
॥ चौपाई ॥
जय प्रभु परशुराम सुख सागर,
जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर।
भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा,
क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा।
जमदग्नी सुत रेणुका जाया,
तेज प्रताप सकल जग छाया।
मास बैसाख सित पच्छ उदारा,
तृतीया पुनर्वसु मनुहारा।
प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा,
तिथि प्रदोष व्यापि सुखधामा।
तब ऋषि कुटीर रुदन शिशु कीन्हा,
रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा।
निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े,
मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े।
तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा,
जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा।
धरा राम शिशु पावन नामा,
नाम जपत लग लह विश्रामा।
भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर,
कांधे मूंज जनेऊ मनहर।
मंजु मेखला कठि मृगछाला,
रुद्र माला बर वक्ष विशाला।
पीत बसन सुन्दर तुन सोहें,
कंध तुरीण धनुष मन मोहें।
वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता,
क्रोध रूप तुम जग विख्याता।
दायें हाथ श्रीपरसु उठावा,
वेद-संहिता बायें सुहावा।
विद्यावान गुण ज्ञान अपारा,
शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा।
भुवन चारिदस अरु नवखंडा,
चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा।
एक बार गणपति के संगा,
जूझे भृगुकुल कमल पतंगा।
दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा,
एक दन्द गणपति भयो नामा।
कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला,
सहस्रबाहु दुर्जन विकराला।
सुरगऊ लखि जमदग्नी पाही,
रहिहहुं निज घर ठानि मन माहीं।
मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई,
भयो पराजित जगत हंसाई।
तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी,
रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी।
ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना,
निन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा।
लगत शक्ति जमदग्नी निपाता,
मनहुं क्षत्रिकुल बाम विधाता।
पितु-बध मातु-रुदन सुनि भारा,
भा अति क्रोध मन शोक अपारा।
कर गहि तीक्षण पराु कराला,
दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला।
क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा,
पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा।
इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी,
छीन धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी।
जुग त्रेता कर चरित सुहाई,
शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई।
गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना,
तब समूल नाश ताहि ठाना।
कर जोरि तब राम रघुराई,
विनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई।
भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता,
भये शिष्य द्वापर महँ अनन्ता।
शस्त्र विद्या देह सुयश कमावा,
गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा।
चारों युग तव महिमा गाई,
सुर मुनि मनुज दनुज समुदाई।
दे कश्यप सों संपदा भाई,
तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई।
अब लौं लीन समाधि नाथा,
सकल लोक नावइ नित माथा।
चारों वर्ण एक सम जाना,
समदर्शी प्रभु तुम भगवाना।
लहहिं चारि फल शरण तुम्हारी,
देव दनुज नर भूप भिखारी।
जो यह पढ़ै श्री परशु चालीसा,
तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा।
पूर्णेन्दु निसि बासर स्वामी,
बसहुं हृदय प्रभु अन्तरयामी।
॥ दोहा ॥
परशुराम को चारु चरित, मेटत सकल अज्ञान।
शरण पड़े को देत प्रभु, सदा सुयश सम्मान।।
॥ श्लोक ॥
भृगुदेव कुलं भानुं, सहस्रबाहुर्मर्दनम्।
रेणुका नयनानंदं, परशुं वन्दे विप्रधनम्।।
भगवान परशुराम का जीवन चरित्र
परशुराम, जिन्हें वैष्णव धर्म में भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है, त्रेता युग में जन्मे थे। उनका जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उनका जन्म एक यज्ञ से भगवान इंद्र के वरदान के कारण हुआ था, जो महर्षि भृगु के पुत्र थे।
जन्म और शिक्षा
उनका मूल नाम राम था, परंतु जब भगवान शिव ने उन्हें परशु (कुल्हाड़ी) प्रदान की, तब से उनका नाम परशुराम पड़ा। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र और ऋचीक से प्राप्त की और विभिन्न दिव्य अस्त्र एवं मंत्र भी सीखे।
प्रतिशोध और क्षत्रियों का विनाश
उनका जीवन क्षत्रियों के विनाश का प्रतीक है। जब उनके पिता जमदग्नि की हत्या एक क्षत्रिय ने की, तो परशुराम ने प्रतिशोध लेते हुए सभी क्षत्रियों का निर्मम विनाश कर दिया। इस प्रकार, वे एक महान योध्दा और शस्त्रविद्या के गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए।
योगदान
परशुराम केवल युद्धकला में ही नहीं, बल्कि समाजोत्थान में भी सक्रिय रहे। उन्होंने “शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र” जैसी कृतियाँ लिखी और नारी जागृति के लिए भी कार्य किए। उन्होंने भीष्म, द्रोण और कर्ण को शस्त्रविद्या सिखाई।
परशुराम की जयंती विशेष रूप से मनाई जाती है, और वे हमेशा धर्म के रक्षक के रूप में पहचाने जाते हैं।
परशुराम चालीसा पढ़ने की विधि
परशुराम चालीसा भगवान परशुराम की स्तुति में लिखी गई एक भक्तिमय रचना है। इसे पढ़ने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- शुद्ध मन: चालीसा का पाठ करते समय मन को शांत और एकाग्र रखें।
- श्रद्धा: भगवान परशुराम के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास रखें।
- स्थान: किसी साफ-सुथरे स्थान पर बैठकर या खड़े होकर पाठ करें।
- दिशा: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- पूजा: पाठ से पहले भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर और धूप-अगरबत्ती दिखाकर पूजा करें।
- उच्चारण: चालीसा का पाठ करते समय स्पष्ट उच्चारण करें।
- अर्थ: हर चौपाई का अर्थ समझते हुए पाठ करें।
- नियमितता: प्रतिदिन या सप्ताह में एक बार निश्चित समय पर पाठ करने का प्रयास करें।
परशुराम चालीसा का महत्त्व
परशुराम चालीसा का पाठ करने का बहुत महत्व है। यह भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम है।
- संकटमोचन: भगवान परशुराम सभी संकटों से मुक्ति दिलाते हैं।
- शक्ति: यह व्यक्ति को शक्ति और साहस प्रदान करता है।
- रक्षा: यह व्यक्ति की रक्षा करता है।
- भय का नाश: यह भय और दुःख को दूर करता है।
परशुराम चालीसा के लाभ
- मन की शांति: यह मन को शांत और तनावमुक्त बनाता है।
- आत्मविश्वास: यह आत्मविश्वास बढ़ाता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: यह सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
- सफलता: जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
परशुराम चालीसा का पाठ करने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। यह चालीसा सभी उम्र के लोगों के लिए लाभदायक है।