नमस्कार, भक्तजनों! भगवान पद्मप्रभु की उपासना से जीवन में शांति, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है। भगवान पद्मप्रभु, जो जैन धर्म के एक महत्वपूर्ण तीर्थंकर हैं, की आराधना से जीवन में संतुलन और स्थिरता आती है।
पद्मप्रभु चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति होती है। पाठ से पहले भगवान पद्मप्रभु की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर और श्रद्धा भाव से पाठ करें। यह विधि विशेष रूप से उन भक्तों के लिए लाभकारी है जो मानसिक शांति और संतुलन की कामना करते हैं।
आइये, हम सभी भगवान पद्मप्रभु की आराधना कर इस चालीसा का पवित्र पाठ करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सुखमय और संतुलित बनाएं।
जय भगवान पद्मप्रभु!
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॥ दोहा ॥
शीश नवा अर्हंत को सिद्धन करुं प्रणाम |
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ||
सर्व साधु और सरस्वती जिन मन्दिर सुखकार |
पद्मपुरी के पद्म को मन मन्दिर में धार ||
॥ चौपाई ॥
जय श्रीपद्मप्रभु गुणधारी,
भवि जन को तुम हो हितकारी |
देवों के तुम देव कहाओ,
पाप भक्त के दूर हटाओ ||
तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ,
छट्टे तीर्थंकर कहलाओ |
तीन काल तिहुं जग को जानो,
सब बातें क्षण में पहचानो ||
वेष दिगम्बर धारणहारे,
तुम से कर्म शत्रु भी हारे |
मूर्ति तुम्हारी कितनी सुन्दर,
दृस्टि सुखद जमती नासा पर ||
क्रोध मान मद लोभ भगाया,
राग द्वेष का लेश न पाया |
वीतराग तुम कहलाते हो, ;
सब जग के मन को भाते हो ||
कौशाम्बी नगरी कहलाए,
राजा धारणजी बतलाए |
सुन्दरि नाम सुसीमा उनके,
जिनके उर से स्वामी जन्मे ||
कितनी लम्बी उमर कहाई,
तीस लाख पूरब बतलाई |
इक दिन हाथी बंधा निरख कर,
झट आया वैराग उमड़कर ||
कार्तिक वदी त्रयोदशी भारी,
तुमने मुनिपद दीक्षा धारी |
सारे राज पाट को तज के,
तभी मनोहर वन में पहुंचे ||
तप कर केवल ज्ञान उपाया,
चैत सुदी पूनम कहलाया |
एक सौ दस गणधर बतलाए,
मुख्य व्रज चामर कहलाए ||
लाखों मुनि आर्यिका लाखों,
श्रावक और श्राविका लाखों |
संख्याते तिर्यच बताये,
देवी देव गिनत नहीं पाये ||
फिर सम्मेदशिखर पर जाकर,
शिवरमणी को ली परणा कर|
पंचम काल महा दुखदाई,
जब तुमने महिमा दिखलाई ||
जयपुर राज ग्राम बाड़ा है,
स्टेशन शिवदासपुरा है |
मूला नाम जाट का लड़का,
घर की नींव खोदने लागा ||
खोदत-खोदत मूर्ति दिखाई,
उसने जनता को बतलाई |
चिन्ह कमल लख लोग लुगाई,
पद्म प्रभु की मूर्ति बताई ||
मन में अति हर्षित होते हैं,
अपने दिल का मल धोते हैं |
तुमने यह अतिशय दिखलाया,
भूत प्रेत को दूर भगाया ||
भूत प्रेत दुःख देते जिसको,
चरणों में लेते हो उसको |
जब गंधोदक छींटे मारे,
भूत प्रेत तब आप बकारे ||
जपने से जब नाम तुम्हारा,
भूत प्रेत वो करे किनारा |
ऐसी महिमा बतलाते हैं,
अन्धे भी आंखे पाते है ||
प्रतिमा श्वेत-वर्ण कहलाए,
देखत ; ही हिरदय को भाए |
ध्यान तुम्हारा जो धरता है,
इस भव से वह नर तरता है ||
अन्धा देखे, गूंगा गावे,
लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे |
बहरा सुन-सुन कर खुश होवे,
जिस पर कृपा तुम्हारी होवे||
मैं हूं स्वामी दास तुम्हारा,
मेरी नैया कर दो पारा |
चालीसे को ‘चन्द्र’ बनावे,
पद्म प्रभु को शीश नवावे ||
॥ सोरठा ॥
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन |
खेय सुगन्ध अपार, पद्मपुरी में आय के ||
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो |
जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले ||
पद्मप्रभु भगवान: जैन धर्म के छठे तीर्थंकर
श्री पद्म प्रभु भगवान, जैन धर्म के छठे तीर्थंकर हैं। इनकी पूर्व पर्याय का नाम राजा अपराजित है, जो सुसीमा नगरी के राजा थे। सुसीमा नगर, विदेह के वत्सा देश में स्थित धातकी खंड के पूर्व भाग में है।
श्री पद्म प्रभु का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ। वह गर्भ में उपरिम ग्रैयेवक के प्रतिकर विमान से आए थे। श्री सुमतिनाथ भगवान के मोक्ष जाने के बाद श्री पद्म प्रभु भगवान का जन्म नब्बे हजार करोड़ सागर बीत जाने पर हुआ।
उनके पिता का नाम श्री धरण राजा और माता का नाम श्रीमती सुसीमा देवी था। उन्होंने माघ कृष्णा छट को गर्भ में आए और कौशाम्बी नगरी में कार्तिक कृष्णा तेरस को जन्म लिया। उनका जन्म चित्रा नक्षत्र में हुआ था और उन्हें लाल कमल के चिन्ह से जाना जाता है।
श्री पद्म प्रभु भगवान की आयु तीस लाख वर्ष थी और उनका कुमार काल साढ़े सात लाख वर्ष का था। उनका शारीरिक रंग विद्रुमवर्ण (लालवर्ण) था और उनकी ऊंचाई दो सौ पचास धनुष थी।
उनका राज्यकाल साड़े इक्कीस लाख वर्ष पूर्व था। उन्हें जाति स्मरण से वैराग्य प्राप्त हुआ और उन्होंने कार्तिक कृष्णा तेरस को चित्रा नक्षत्र में दीक्षा ली, जो मनोहर वन में अपरान्ह काल में हुई।
इस प्रकार, श्री पद्म प्रभु भगवान जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांतों और शिक्षाओं के प्रतीक हैं।
पद्मप्रभु चालीसा: भक्ति का साधन
पद्मप्रभु चालीसा भगवान पद्मप्रभु की स्तुति में लिखी गई एक भक्तिमय रचना है। यह चालीसा भगवान पद्मप्रभु के जीवन और लीलाओं का वर्णन करती है और उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा को बढ़ावा देती है।
पद्मप्रभु चालीसा पढ़ने की विधि
- शुद्ध मन: चालीसा का पाठ करते समय मन को शांत और एकाग्र रखें।
- श्रद्धा: भगवान पद्मप्रभु के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास रखें।
- स्थान: किसी साफ-सुथरे स्थान पर बैठकर या खड़े होकर पाठ करें।
- दिशा: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- पूजा: पाठ से पहले भगवान पद्मप्रभु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर और धूप-अगरबत्ती दिखाकर पूजा करें।
- उच्चारण: चालीसा का पाठ करते समय स्पष्ट उच्चारण करें।
- अर्थ: हर चौपाई का अर्थ समझते हुए पाठ करें।
- नियमितता: प्रतिदिन या सप्ताह में एक बार निश्चित समय पर पाठ करने का प्रयास करें।
पद्मप्रभु चालीसा का महत्त्व
पद्मप्रभु चालीसा का पाठ करने का बहुत महत्व है। यह भगवान पद्मप्रभु की कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम है।
- मोक्ष की प्राप्ति: भगवान पद्मप्रभु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- शांति: यह मन को शांत और तनावमुक्त बनाता है।
- ज्ञान: यह ज्ञान को बढ़ाता है।
- पुण्य: यह पुण्य की प्राप्ति कराता है।
पद्मप्रभु चालीसा के लाभ
- मन की शांति: यह मन को शांत और तनावमुक्त बनाता है।
- आत्मविश्वास: यह आत्मविश्वास बढ़ाता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: यह सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
- जीवन में सफलता: जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
पद्मप्रभु चालीसा का पाठ करने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। यह चालीसा सभी उम्र के लोगों के लिए लाभदायक है।