नमस्कार, श्रद्धालु भक्तों ! आदिनाथ भगवान, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर हैं, की आराधना से हमें आध्यात्मिक उन्नति और शांति प्राप्त होती है। भगवान आदिनाथ की उपासना से जीवन में सच्ची समृद्धि की प्राप्ति होती है।
आदिनाथ चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में सुख, शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है। चालीसा पाठ से पहले आदिनाथ भगवान की प्रतिमा के सामने दीप जलाएं और भक्ति भाव से पाठ करें। इस पूजा विधि से आदिनाथ भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।
जल फलादि समस्त मिलायके, जजत हूं पद मंगल गायके।
भगत वत्सल दीनदयाल जी, करहु मोहि सुखी लखि।
आइये, हम सभी आदिनाथ भगवान की आराधना कर इस चालीसा का पवित्र पाठ करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को शांति और समृद्धि से भरपूर बनाएं।
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॥ दोहा ॥
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन को, करूं प्रणाम ।
उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम ॥
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार ।
आदिनाथ भगवान को, मन मन्दिर में धार ॥
॥ चौपाई ॥
जै जै आदिनाथ जिन स्वामी ।
तीनकाल तिहूं जग में नामी ॥
वेष दिगम्बर धार रहे हो ।
कर्मो को तुम मार रहे हो ॥
हो सर्वज्ञ बात सब जानो ।
सारी दुनियां को पहचानो ॥
नगर अयोध्या जो कहलाये ।
राजा नाभिराज बतलाये ॥4॥
मरुदेवी माता के उदर से ।
चैत वदी नवमी को जन्मे ॥
तुमने जग को ज्ञान सिखाया ।
कर्मभूमी का बीज उपाया ॥
कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने ।
जनता आई दुखड़ा कहने ॥
सब का संशय तभी भगाया ।
सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया ॥8॥
खेती करना भी सिखलाया ।
न्याय दण्ड आदिक समझाया ॥
तुमने राज किया नीति का ।
सबक आपसे जग ने सीखा ॥
पुत्र आपका भरत बताया ।
चक्रवर्ती जग में कहलाया ॥
बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे ।
भरत से पहले मोक्ष सिधारे ॥12॥
सुता आपकी दो बतलाई ।
ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई ॥
उनको भी विध्या सिखलाई ।
अक्षर और गिनती बतलाई ॥
इक दिन राज सभा के अंदर,
एक अप्सरा नाच रही थी ॥
आयु उसकी बहुत अल्प थी ।
इसलिए आगे नहीं नाच सकी थी ॥16॥
विलय हो गया उसका सत्वर ।
झट आया वैराग्य उमड़कर ॥
बेटो को झट पास बुलाया ।
राज पाट सब में बंटवाया ॥
छोड़ सभी झंझट संसारी ।
वन जाने की करी तैयारी ॥
राव हजारों साथ सिधाए ।
राजपाट तज वन को धाये ॥20॥
लेकिन जब तुमने तप किना ।
सबने अपना रस्ता लीना ॥
वेष दिगम्बर तजकर सबने ।
छाल आदि के कपड़े पहने ॥
भूख प्यास से जब घबराये ।
फल आदिक खा भूख मिटाये ॥
तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये ।
जो अब दुनियां में दिखलाये ॥24॥
छै: महीने तक ध्यान लगाये ।
फिर भजन करने को धाये ॥
भोजन विधि जाने नहि कोय ।
कैसे प्रभु का भोजन होय ॥
इसी तरह बस चलते चलते ।
छः महीने भोजन बिन बीते ॥
नगर हस्तिनापुर में आये ।
राजा सोम श्रेयांस बताए ॥28॥
याद तभी पिछला भव आया ।
तुमको फौरन ही पड़धाया ॥
रस गन्ने का तुमने पाया ।
दुनिया को उपदेश सुनाया ॥
पाठ करे चालीसा दिन ।
नित चालीसा ही बार ॥
चांदखेड़ी में आय के ।
खेवे धूप अपार ॥32॥
जन्म दरिद्री होय जो ।
होय कुबेर समान ॥
नाम वंश जग में चले ।
जिनके नहीं संतान ॥
तप कर केवल ज्ञान पाया ।
मोक्ष गए सब जग हर्षाया ॥
अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर ।
चांदखेड़ी भंवरे के अंदर ॥36॥
उसका यह अतिशय बतलाया ।
कष्ट क्लेश का होय सफाया ॥
मानतुंग पर दया दिखाई ।
जंजीरे सब काट गिराई ॥
राजसभा में मान बढ़ाया ।
जैन धर्म जग में फैलाया ॥
मुझ पर भी महिमा दिखलाओ ।
कष्ट भक्त का दूर भगाओ ॥40॥
॥ सोरठा ॥
पाठ करे चालीसा दिन, नित चालीसा ही बार ।
चांदखेड़ी में आय के, खेवे धूप अपार ॥
जन्म दरिद्री होय जो, होय कुबेर समान ।
नाम वंश जग में चले, जिनके नहीं संतान ॥
॥ इति श्री आदिनाथ चालीसा समाप्त ॥
आदिनाथ के बारे में
भगवान श्री आदिनाथ जी, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं और उन्हें “ऋषभनाथ”, “वृषभनाथ”, “आदि ब्रह्मा”, और “प्रजापति” जैसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। उनका जन्म अयोध्या नगरी में हुआ, जो कि इक्ष्वाकु वंश का हिस्सा है।
प्रमुख नाम और उनके अर्थ
- श्री आदिनाथ जी: उन्हें “आदि” का मतलब पहले के कारण यह नाम दिया गया है।
- श्री ऋषभनाथ जी: ऋषि समूह के नायक और युग की शुरुआत में दीक्षा लेने के कारण।
- श्री वृषभनाथ जी: धर्म का उपदेश देने और इसके पालन के कारण।
- श्री आदि ब्रह्मा: पहले केवल ज्ञानी होने के नाते।
- प्रजापति: प्रजा को कर्तव्य और धर्म बताकर पालन करने के कारण।
जन्म एवं विशेषताएँ
- जन्म तिथि: चैत्र कृष्णा नवमी को।
- गर्भ कल्याणक: आषाढ़ कृष्णा द्वितीया को।
- गर्भ नक्षत्र: रोहिणी नक्षत्र।
- जन्म स्थान: अयोध्या नगरी, जिसे “साकेत” और “मिथलानगरी” भी कहा जाता है।
- पिता का नाम: नाभिराय जी।
- माता का नाम: मरूदेवी।
ज्ञान और आयु
भगवान श्री आदिनाथ जी को जन्म से ही तीन प्रकार के ज्ञान – मति, श्रुत और अवधि का ज्ञान प्राप्त था। उनकी आयु चौरासी लाख वर्ष बताई जाती है।
महत्त्व
भगवान आदिनाथ जी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए आदर्श और प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका जीवन और उपदेश आत्मज्ञान और आत्मा की मुक्ति की ओर मार्गदर्शन करते हैं। उनका आचार-विचार और शिक्षाएँ अनुयायियों को सही दिशा में प्रेरित करती हैं, जिससे वे धर्म के मार्ग पर चल सकें।
आदिनाथ चालीसा पढ़ने की विधि
आदिनाथ चालीसा का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधियों का पालन किया जा सकता है:
- शांत स्थान चुनें: ऐसे स्थान पर बैठें जहाँ शांति हो और ध्यान लगाना आसान हो।
- शुद्धता का ध्यान रखें: स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें और मन को प्रसन्न और स्पष्ट रखें।
- दीप जलाएं: आदिनाथ की तस्वीर या मूर्ती के पास दीपक और अगरबत्ती रखें।
- ध्यान और श्रद्धा: आदिनाथ का ध्यान करें और श्रद्धा भावना से चालीसा का पाठ करें।
- चालीसा का पाठ: आदिनाथ चालीसा को ध्यानपूर्वक पढ़ें, साधारण रूप से 40 बार, ताकि यह प्रभावी तरीके से हृदय में उतरे।
आदिनाथ चालीसा का महत्त्व
आदिनाथ चालीसा का महत्त्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह जैन धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणा और संरक्षण का स्रोत है। इसमें आदिनाथ की महानता, उनके गुण और उनकी शिक्षाएं शामिल हैं। चालीसा का पाठ भक्तों को आत्मा के मूल तत्व को समझने और अंदर की शांति पाने में मदद करता है, साथ ही जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
आदिनाथ चालीसा के लाभ
आदिनाथ चालीसा का पाठ करने के कई लाभ हो सकते हैं:
- आध्यात्मिक जागरूकता: यह आत्मा की गहराइयों में जाकर मन को जागरूक करता है।
- शांति और संतोष: नियमित पाठ से मानसिक शांति और संतोष की अनुभूति होती है।
- सकारात्मकता: यह जीवन में सकारात्मकता लाने और नकारात्मकता दूर करने में मददगार होता है।
- साधना में मदद: चालीसा का पाठ साधक को ध्यान और साधना में एकाग्रता बढ़ाने में सहायता करता है।
इन बिंदुओं के माध्यम से, आदिनाथ और उनकी चालीसा के महत्व को समझा जा सकता है।