नमस्ते, भक्तों! माता पद्मावती की कृपा से हमारे जीवन में धन, समृद्धि और सुख का आगमन होता है। माता पद्मावती की उपासना से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होते हैं जो जीवन को खुशहाल बनाते हैं।
पद्मावती मात चालीसा का पाठ नियमित रूप से करने से धन, ऐश्वर्य और सुख की प्राप्ति होती है। चालीसा पाठ से पहले माता पद्मावती की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर और पुष्प अर्पित करें। यह विधि विशेष रूप से उन भक्तों के लिए लाभकारी है जो जीवन में समृद्धि की कामना रखते हैं।
आइये, हम सभी माता पद्मावती की आराधना कर इस चालीसा का पवित्र पाठ करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को खुशहाल और समृद्ध बनाएं।
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॥ चौपाई ॥
नमो पद्मावती सुख करनी,
नमो दुर्गावती दुःख हरणी
महिमा नमित अपार तुम्हारी,
मैं तुम गुणमुख वरणत हारी
जय श्री पार्श्व दया निधान,
द्वध्न अवस्था धारी अयान
गंगा तट आय सुखदीन,
तहां तापस कुपत में लीन
काष्ट थुल में नाग दोए,
तापस ने जला दीना सोय
भेद जान श्री पार्श्व देव,
तापस को बता दीना जिनदेव
तापस चीर काष्ट तुरन्त,
पायो नाग – नागिन मरणत
प्रभु वचन सुन निर्मल भाए,
नाग नागिन उत्तम गति पाय
मर कर दोनों स्वर्ग जाए,
धरणेन्द्र पद्मावती लहाय
जब कानन में पार्श्व जिनन्द,
धरयो योग आनन्द कन्द
तब ही धूम सुकेत अयान,
कमठाचर भयो सुआन
नभ ते देखो जब जिन धीर,
पूर्व बैर याद कियो गम्भीर
कमठ उपसर्ग भरी कीनो,
तुम नाथ सहित सहाय दीनो
जिन माथ चढ़ाय श्री जिनेन्द्र
फन की करि छाया फनिइन्द्र
जिन पार्श्व लही केवल ज्ञान,
इन्द्र रचो समोशरण महान
वन उपवन की शोभा अपार,
प्रभु दिव्य वचन आनन्दकार
इन्द्र, नरेन्द्र, धरणेन्द्र नहि,
देख तम जस प्रशंसा करहि
अद्भुत ज्योति है तुम्हारी,
सबहि लोक फैला उजियारा
धर्मानुरंग रंग विशाला,
लाल रंग, अंग बहु आला
रूप मात अधिक सुखदानी,
दर्श करत मन अति हर्षानी
अकलंक-बोध बाद मंझारा,
तारा कीनो मद अतिभारा
रूप सरस्वती का तुम धारा,
कर सहाय अकलंक उभारा
सारा मद हुआ चकनाचूर,
तुम यश अमित फैला जगपूर
जब कहीं धर्म विवाद पड़ा,
बात मादियों का मान हारा
तुम्ही सार शक्तिलय लीना,
लखु तुमको शत्रु भंग लीना
कर में कंज – पुंज विराजे,
उर में सुमन माला साजै
चरण बिन्द में घुंघरु बाजै,
जुग भाग कान कुण्डल साजै
सिर मुकुट सुन्दर सोहना,
लालतिलक भाल मनमोहना
परी भीड़ सन्तन पर जब जब,
भई सहाय मातु तुम तब
प्रेम भहि से जो यश गावै,
रिद्धि सिद्धि नेवा निधि पावै
धन धान्य वृधि सुख पावै,
सुन्दर संतान सौ खिलावै
पद भ्रष्ट सुपद फिर पावहि,
राज भ्रष्ट सुराज लहावै
उपसर्ग दुर्ग दुर्गावती रानी,
सब संकट काटत सुख दानी
क्यों ऐ मात मुझे भुलाया,
अपराध क्षमा कर अब माया
कारज मोरे सब सुधारो,
काट दुःख सब विघन विचारों
कृपा करो हे अम्बा रानी,
दीजै सम्यक्त शिव दानी
भय रोग सर्व पीड़ा हरणि,
शत्रु नाश कारज सिद्ध करनी
ध्यावै तुम्हें जो नर मनलाई,
सब सुख भोग परम पद पाई
सुमन भक्ति वश कीर्ति वस्त्रानी,
जय जय जगदम्बा रानी
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पद्मावती (जैन धर्म)
पद्मावती, जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं, जिन्हें 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की रक्षक देवी या शासन देवी के रूप में पूजा जाता है। वे श्वेताम्बर परंपरा में पार्श्वयक्ष के साथ और दिगंबर परंपरा में धरनेन्द्र के साथ देखने को मिलती हैं।
जैन जीवनचरित्र
पद्मावती का जैन कथाओं में उल्लेख है, जहां उन्हें एक शक्तिशाली यक्षी के रूप में दर्शाया गया है। जैन परंपरा के अनुसार, उन्होंने पार्श्वनाथ की रक्षा की थी, जब उन्हें मेघमाली नामक राक्षस द्वारा परेशान किया जा रहा था। उनकी पूजा विशेष रूप से तांत्रिक विधियों के साथ की जाती है, जिसमें यंत्र-विद्या, पीठ-स्थापना और मंत्र-पूजन का समावेश होता है।
पूजा और उपासना
पद्मावती को हर शुक्रवार विशेष रूप से पूजा जाता है, और उन्हें आमतौर पर अंबिका और चक्रेश्वरी के साथ पूजा जाता है। जैन श्रद्धालु उन्हें तंत्र संबंधी शक्तियों का प्रतीक मानते हैं।
स्वरूप
पद्मावती को अक्सर एक कमल फूल पर बैठे हुए दर्शाया जाता है, जिनके सिर पर नाग का फन होता है। उनके हाथों में वह गदा, जप माला, कमल और फल जैसी वस्तुएं हो सकती हैं।
मुख्य मंदिर
पद्मावती के कई प्रमुख मंदिर हैं, जैसे कि
- कर्कला में पद्मावती बसडी
- हुमचा का पद्मावती मंदिर
पद्मावती जैन धर्म में सामाजिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और उन्हें श्रद्धापूर्वक पूजा जाता है।