प्रणाम, श्रद्धालु भक्तजन! चंद्रप्रभु स्वामी की कृपा आप सभी पर बनी रहे। चंद्रप्रभु स्वामी, जो जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर हैं, उनकी आराधना से मन और आत्मा में शांति प्राप्त होती है।
चंद्रप्रभु चालीसा का पाठ करने से जीवन में संतुलन और धैर्य की प्राप्ति होती है। इस चालीसा का नियमित पाठ नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और हमें आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है। चालीसा पाठ से पहले चंद्रप्रभु स्वामी की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर, ध्यानपूर्वक पाठ करें। इससे चंद्रप्रभु स्वामी की कृपा प्राप्त होती है और सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
आइये, हम सभी चंद्रप्रभु स्वामी की आराधना कर इस चालीसा का पवित्र पाठ करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को शांति और समृद्धि से भरपूर बनाएं।
जय श्री चंद्रप्रभु स्वामी!
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॥ दोहा ॥
वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिन वाणी को ध्याय ।
लिखने का साहस करुं, चालीसा सिर नाय ।
देहरे के श्रीचन्द्र को, पूजौं मन वच काय ।
ऋद्धि सिद्धि मंगल करें, विघ्न दूर हो जाय ।
॥ चौपाई ॥
जय श्रीचन्द्र दया के सागर,
देहरे वाले ज्ञान उजागर ।
शांति छवि मूरति अति प्यारी,
भेष दिगम्बर धारा भारी ।
नासा पर है द्रष्टि तुम्हारी,
मोहनी मूरति कितनी प्यारी ।
देवों के तुम देव कहावो,
कष्ट भक्त के दूर हटावो ।
समन्तभद्र मुनिवर ने ध्याया,
पिंडी फटी दर्श तुम पाया ।
तुम जग में सर्वज्ञ कहावो,
अष्टम तीर्थंकर कहलावो ।
महासेन के राजदुलारे,
मात सुलक्षणा के हो प्यारे ।
चन्द्रपुरी नगरी अति नामी,
जन्म लिया चन्द्र-प्रभु स्वामी ।
पौष वदी ग्यारस को जन्मे,
नर नारी हरषे तब मन में ।
काम क्रोध तृष्णा दुखकारी,
त्याग सुखद मुनि दीक्षा धारी ।
फाल्गुन वदी सप्तमी भाई,
केवल ज्ञान हुआ सुखदाई ।
फिर सम्मेद शिखर पर जाके,
मोक्ष गये प्रभु आप वहां से।
लोभ मोह और छोड़ी माया,
तुमने मान कषाय नसाया ।
रागी नहीं, नहीं तू द्वेषी,
वीतराग तू हित उपदेशी ।
पंचम काल महा दुखदाई,
धर्म कर्म भूले सब भाई ।
अलवर प्रान्त में नगर तिजारा,
होय जहां पर दर्शन प्यारा।
उत्तर दिशि में देहरा माहीं,
वहां आकर प्रभुता प्रगटाई ।
सावन सुदि दशमि शुभ नामी,
प्रकट भये त्रिभुवन के स्वामी।
चिह्न चन्द्र का लख नर नारी,
चंद्रप्रभु की मूरती मानी ।
मूर्ति आपकी अति उजयाली,
लगता हीरा भी है जाली ।
अतिशय चन्द्र प्रभु का भारी,
सुनकर आते यात्री भारी ।
फाल्गुन सुदी सप्तमी प्यारी,
जुड़ता है मेला यहां भारी ।
कहलाने को तो शशि धर हो,
तेज पुंज रवि से बढ़कर हो ।
नाम तुम्हारा जग में सांचा,
ध्यावत भागत भूत पिशाचा ।
राक्षस भूत प्रेत सब भागें,
तुम सुमिरत भय कभी न लागे।
कीर्ति तुम्हारी है अति भारी,
गुण गाते नित नर और नारी।
जिस पर होती कृपा तुम्हारी,
संकट झट कटता ही भारी ।
जो भी जैसी आश लगाता,
पूरी उसे तुरत कर पाता ।
दुखिया दर पर जो आते हैं,
संकट सब खो कर जाते हैं ।
खुला सभी हित प्रभु द्वार है,
चमत्कार को नमस्कार है ।
अन्धा भी यदि ध्यान लगावे,
उसके नेत्र शीघ्र खुल जावें ।
बहरा भी सुनने लग जावे,
पगले का पागलपन जावे ।
अखंड ज्योति का घृत जो लगावे
संकट उसका सब कट जावे ।
चरणों की रज अति सुखकारी,
दुख दरिद्र सब नाशनहारी ।
चालीसा जो मन से ध्यावे,
पुत्र पौत्र सब सम्पति पावे ।
पार करो दुखियों की नैया,
स्वामी तुम बिन नहीं खिवैया।
प्रभु मैं तुम से कुछ नहिं चाहूं
दर्श तिहारा निश दिन पाऊँ।
॥ दोहा ॥
करुं वन्दना आपकी, श्रीचन्द्र प्रभु जिनराज ।
जंगल में मंगल कियो, रखो भक्त की लाज ।
चंद्रप्रभु: जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर
श्री चंदा प्रभु भगवान, जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर हैं। इनकी पूर्व पर्याय का नाम राजा श्री श्रीषेण है, जो कि सुगंध देश के श्रीपुर नगर के राजा थे। श्री चंदा प्रभु का जन्म चंद्रपुर नगर में हुआ, और उनका जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था।
- गर्भ कल्याणक: श्री चंदा प्रभु का गर्भ कल्याणक चैत्र कृष्णा पंचमी के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में हुआ था। वह वैजयंत नामक अनुत्तर विमान से गर्भ में आए।
- शारीरिक विशेषताएँ: श्री चंदा प्रभु का शरीर चंद्रमा के समान श्वेत वर्ण का था और उनकी ऊंचाई एक सौ पचास धनुष थी।
- आयु: उनकी आयु दश लाख वर्ष मानी जाती है।
- वैराग्य: श्री चंदा प्रभु भगवान को अध्रुवादि भावनाओं के चिंतन करने के कारण वैराग्य प्राप्त हुआ।
- दीक्षा काल्याणक: उन्होंने पौष कृष्णा ग्यारस को दीक्षा ली।
- संकेत चिन्ह: श्री चंदा प्रभु भगवान को चंद्रमा के चिन्ह से जाना जाता है।
- राज्य काल: उनका राज्य काल साढ़े छह लाख वर्ष पूर्व था।
श्री चंदा प्रभु भगवान का जीवन और शिक्षाएँ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका अनुकरण और उपदेश सदैव श्रद्धा और भक्ति के साथ किए जाते हैं।
चंद्रप्रभु चालीसा पढ़ने की विधि
चंद्रप्रभु चालीसा का पाठ करते समय इन बातों का ध्यान रखें:
- शुद्ध मन: पाठ करते समय मन को शांत और एकाग्र रखें।
- श्रद्धा: भगवान चंद्रप्रभु के प्रति अटूट श्रद्धा रखें।
- विधि: आप बैठकर या खड़े होकर भी पाठ कर सकते हैं।
- समय: आप किसी भी शुभ समय में पाठ कर सकते हैं।
- पूजा: पाठ से पहले भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर और धूप-अगरबत्ती दिखाकर पूजा करें।
चंद्रप्रभु चालीसा का महत्त्व
चंद्रप्रभु चालीसा का पाठ करने का बहुत महत्व है। यह भगवान चंद्रप्रभु के प्रति भक्ति को बढ़ाता है और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का एक माध्यम है।
- मन की शांति: यह मन को शांत और तनावमुक्त बनाता है।
- ज्ञान प्राप्ति: यह ज्ञान प्राप्ति में सहायक होता है।
- पापों का नाश: यह पापों का नाश करता है।
- मोक्ष का मार्ग: यह मोक्ष के मार्ग पर चलने में मदद करता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: यह सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
चंद्रप्रभु चालीसा के लाभ
- मनोकामनाओं की पूर्ति: भगवान चंद्रप्रभु की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- रोग मुक्ति: शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
- आध्यात्मिक विकास: आध्यात्मिक विकास होता है।
- सुख-समृद्धि: यह सुख-समृद्धि लाता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: नियमित पाठ से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
चंद्रप्रभु चालीसा का पाठ करने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। यह चालीसा सभी उम्र के लोगों के लिए लाभदायक है।