प्रिय साधक, आप सभी को सादर प्रणाम और मंगलकामनाएँ। इस पावन अवसर पर, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ और आपके स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्रार्थना करता हूँ।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते॥
माँ काली, जो शक्ति, साहस और रक्षक देवी हैं, उनकी आराधना से हमें आत्मिक बल, साहस और सुरक्षा की प्राप्ति होती है। माँ काली की कृपा से हमारे जीवन के सभी कष्ट और विघ्न दूर होते हैं और हमें धैर्य, शक्ति और आत्मिक संतुलन मिलता है। माँ काली चालीसा का पाठ करने से हमारे जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि आती है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
आइये, हम सब मिलकर माँ काली चालीसा का पवित्र पाठ करें और माँ काली के दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को सुरक्षित और मंगलमय बनाएं। उनकी महिमा का गुणगान करते हुए, हम उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में शांति, समृद्धि और शक्ति की प्राप्ति करेंगे।
जय माँ काली!
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॥ दोहा ॥
जयकाली कलिमलहरण,महिमा अगम अपार ।
महिष मर्दिनी कालिका,देहु अभय अपार ॥
॥ चौपाई ॥
अरि मद मान मिटावन हारी ।
मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता ।
दुष्टदलन जग में विख्याता ॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै ।
कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला ।
हाथ तीसरे सोहत भाला ॥4॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे ।
छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी ।
शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता ।
जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी ।
निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥8॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता ।
तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक ।
कल्याणी पापी कुल घालक ॥
शेष सुरेश न पावत पारा ।
गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा ।
विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥12॥
रूप भयंकर जब तुम धारा ।
दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे ।
भक्तजनों के संकट टारे ॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी ।
भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं ।
नारद शारद पार न पावैं ॥16॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी ।
तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता ।
विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा ।
उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा ।
काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥20॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे ।
अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी ।
चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
त्रेता में रघुवर हित आई ।
दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला ।
भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥24॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे ।
कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो ।
स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
ये बालक लखि शंकर आए ।
राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई ।
यही रूप प्रचलित है माई ॥28॥
बाढ्यो महिषासुर मद भारी ।
पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की ।
पीर मिटावन हित जन-जन की ॥
तब प्रगटी निज सैन समेता ।
नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं ।
तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥32॥
मान मथनहारी खल दल के ।
सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा ।
पावैं मनवांछित फल मेवा ॥
संकट में जो सुमिरन करहीं ।
उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं ।
भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥36॥
काली चालीसा जो पढ़हीं ।
स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा ।
केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥
करहु मातु भक्तन रखवाली ।
जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी ।
भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥40॥
॥ दोहा ॥
प्रेम सहित जो करे,काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना,होय सकल जग ठाठ ॥
माँ काली के बारे में
माँ काली, जिन्हें महाकाली, कालिका, या भद्रकाली के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वे शक्ति, विनाश, और समय की देवी मानी जाती हैं, जिनका रूप काला, विकराल और भयप्रद होता है। माँ काली का उद्भव असुरों के संहार के लिए हुआ था, और उनका यह रूप उन लोगों के लिए विनाशकारी होता है जो दानवीय प्रकृति के होते हैं और जिनमें दया की भावना नहीं होती।
काली का नाम “काल” शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ समय होता है, जो सबको अपने अधीन कर लेता है। माँ काली अच्छाई की विजय और बुराई के नाश की प्रतीक मानी जाती हैं। वे सुंदरी रूप वाली आदिशक्ति दुर्गा का विकराल रूप हैं और विशेष रूप से बंगाल, ओडिशा, और असम में पूजा जाता है।
शाक्त परंपरा में, माँ काली दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं और वैष्णो देवी में भी उनके पूजन का महत्व है। उनके इस रूप को महाकाली भी कहा जाता है, और यह माना जाता है कि माँ काली अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उन्हें सभी प्रकार के भय और संकट से मुक्त करती हैं।
माँ काली की पूजा तांत्रिक परंपराओं में भी होती है, जैसे तांत्रिक बौद्ध धर्म में भयानक रूप वाली योगिनियों और डाकिनियों की पूजा की जाती है। तिब्बत में उन्हें “त्रोमा नग्मो” के नाम से जाना जाता है।
काली की पूजा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों में भी होती है। यूरोप में “सन्त सारा” या “सरला काली” का एक तीर्थस्थान है, जो माना जाता है कि मध्ययुग में रोमा लोगों के साथ भारत से यूरोप गई थी।
माँ काली के भयंकर रूप के बावजूद, वे अपने भक्तों के लिए अत्यंत दयालु और कृपालु होती हैं, और उनके भक्त उन्हें निडरता और शक्ति की देवी के रूप में मानते हैं।
काली चालीसा पढ़ने की विधि
काली चालीसा का पाठ करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए:
- शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शांत वातावरण: एक शांत और एकांत स्थान चुनें।
- पूजा स्थल: एक साफ जगह पर माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- दीपक: दीपक जलाकर माता का ध्यान करें।
- धूप: धूप जलाएं।
- फूल और चढ़ावा: फूल, फल और मिठाई चढ़ाएं।
- मनोयोग: चालीसा का पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और भावनाओं के साथ पाठ करें।
काली चालीसा का महत्त्व
काली चालीसा का पाठ करने का बहुत महत्व है। माना जाता है कि:
- भय का नाश: काली चालीसा का नियमित पाठ करने से भय का नाश होता है।
- शक्ति का संचार: यह शक्ति और साहस का संचार करता है।
- रक्षा: यह दुश्मनों से रक्षा करता है।
- आशीर्वाद: माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- सौभाग्य: घर में सुख और समृद्धि आती है।
काली चालीसा के लाभ
काली चालीसा के कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:
- नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति: नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है।
- आत्मविश्वास: आत्मविश्वास बढ़ता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- जीवन में सफलता: जीवन में सफलता मिलती है।
- रोगों से मुक्ति: रोगों से मुक्ति मिलती है।
निष्कर्ष:
काली चालीसा का पाठ करना एक पवित्र अनुष्ठान है जो भक्तों को माता के आशीर्वाद से भर देता है। नियमित रूप से इसका पाठ करने से भय दूर होता है और जीवन में सफलता मिलती है।
अन्य जानकारी:
- काली पूजा के दिन विशेष रूप से काली चालीसा का पाठ किया जाता है।
- माँ काली को प्रसन्न करने के लिए काले रंग के वस्त्र और फूल चढ़ाए जाते हैं।
कृपया ध्यान दें: यह जानकारी सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना उचित होता है।