प्रिय साधक, आप सभी को सादर प्रणाम और शुभकामनाएँ। इस पावन अवसर पर, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ और आपके स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्रार्थना करता हूँ।
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
भगवान शनि, जो कर्मफलदाता और न्याय के देवता हैं, उनकी आराधना से हमारे जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि आती है। शनि देव की कृपा से हमारे सभी कष्ट दूर होते हैं और हमें धैर्य, संयम और आत्मिक बल की प्राप्ति होती है। शनि चालीसा का पाठ करने से हमारे जीवन के सभी विघ्न और बाधाएँ दूर होती हैं।
आइये, हम सब मिलकर शनि चालीसा का पवित्र पाठ करें और भगवान शनि के दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को कष्टमुक्त और सुखमय बनाएं। उनकी महिमा का गुणगान करते हुए, हम उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में शांति, समृद्धि और संतुलन की प्राप्ति करेंगे।
जय शनि देव!
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|| दोहा ||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
|| चौपाई ||
जयति-जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।
भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
मात जानकी गई चुराई।।
लखनहि शक्ति बिकल करि डारा।
मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
तेलिहि घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।
युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्षमी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।
|| दोहा ||
पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
श्री शनि का परिचय
श्री शनि देव भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन्हें कई नामों से जाना जाता है, जैसे यमाग्राज, छायानंदन, सूर्यपुत्र, और काकध्वज। वे शनि ग्रह के देवता हैं और उन्हें कर्मफल दाता माना जाता है। शनि देव का निवास स्थान शनि मंडल है और उनका दिन शनिवार होता है। उनकी पत्नी का नाम नीलादेवी या धामिनी है, और उनके माता-पिता सूर्यदेव और छाया हैं।
शनि देव का जन्म सूर्य की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से हुआ था। छाया की भगवान शिव की भक्ति में मग्नता के कारण शनि का रंग श्याम हो गया, जिससे सूर्यदेव ने शनि पर आरोप लगाया कि वे उनके पुत्र नहीं हैं। इस आरोप के कारण शनि और सूर्य के बीच शत्रुता का जन्म हुआ। शनि देव ने अपनी तपस्या द्वारा शिवजी को प्रसन्न कर शक्ति प्राप्त की और शिवजी ने उन्हें नवग्रहों में सर्वोच्च स्थान दिया।
शनि व्रत कथा में वर्णित है कि शनिदेव ने राजा विक्रमादित्य के साथ विवाद किया था। शनिदेव ने राजा को यह चेतावनी दी थी कि वे उसकी शक्ति को कमतर न समझें, अन्यथा उन्हें कष्ट सहन करना पड़ेगा। शनि की साढ़े साती के दौरान राजा विक्रमादित्य को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अंततः, शनिदेव ने राजा को उसकी कठिनाइयों से उबारने का आश्वासन दिया और राजा ने शनि देव की पूजा और कथा को महत्व दिया।
पौराणिक संदर्भ में शनि देव को न्याय का कारक माना गया है। उन्हें तीनों लोकों का न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। शनि देव का शरीर इंद्रकांति की नीलमणि जैसा है और वे गिद्ध पर सवार होते हैं। शनि देव पापियों के लिए संहारक होते हैं और वे उन लोगों को दंडित करते हैं जो अन्याय करते हैं।
खगोलीय विवरण के अनुसार, शनि सूर्य से सबसे दूर स्थित ग्रह है और इसके चारों ओर सात वलय हैं। शनि की दूरी पृथ्वी से 71 करोड़ 31 लाख 43 हजार मील है और इसका व्यास 75 हजार 100 मील है।
ज्योतिष में शनि को मंदगामी और सूर्य-पुत्र के रूप में जाना जाता है। वे मकर और कुंभ राशियों के स्वामी हैं और उनकी साढ़े साती के प्रभाव को विशेष ध्यान से देखा जाता है। शनि की विशेषताएँ वायु विकार, हड्डियों और दांतों के रोगों से संबंधित होती हैं।
शनि देव की पूजा और उनकी कथा को सुनने से व्यक्ति के दुःख दूर हो सकते हैं और जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।
श्री शनि चालीसा पढ़ने की विधि
श्री शनि चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष विधि नहीं है। आप इसे किसी भी समय, किसी भी जगह पर पढ़ सकते हैं। हालांकि, शनिवार के दिन शनि देव को समर्पित कर, तिल के तेल का दीपक जलाकर और काले तिल का दान करके पाठ करना अधिक फलदायी माना जाता है।
- शांति और एकाग्रता: पाठ करते समय मन को शांत रखें और शनि देव पर ध्यान केंद्रित करें।
- शुद्ध मन: शुद्ध मन से पाठ करना चाहिए।
- विश्वास: शनि देव पर अटूट विश्वास रखें।
श्री शनि चालीसा का महत्त्व
श्री शनि चालीसा का पाठ करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। यह व्यक्ति को शनि दोष से मुक्ति दिलाता है। शनि चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है।
श्री शनि चालीसा के लाभ
- शनि दोष का निवारण: शनि चालीसा का नियमित पाठ करने से शनि दोष का निवारण होता है।
- मन की शांति: यह मन को शांत करता है और तनाव को कम करता है।
- सुख-समृद्धि: शनि चालीसा सुख-समृद्धि लाने में भी मदद करता है।
- रोगों से मुक्ति: यह व्यक्ति को रोगों से मुक्ति दिलाता है।
- कार्य सिद्धि: यह व्यक्ति के सभी कार्यों में सफलता दिलाता है।
निष्कर्ष
श्री शनि चालीसा एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यदि आप शनि देव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप श्री शनि चालीसा का पाठ अवश्य करें।
ध्यान दें: किसी भी धार्मिक ग्रंथ का पाठ करते समय, उस ग्रंथ के अर्थ को समझने का प्रयास करना चाहिए। श्री शनि चालीसा का पाठ करते समय, शनि देव के गुणों और उनके प्रति श्रद्धाभाव रखना महत्वपूर्ण है।