"धर्मो रक्षति रक्षितः"
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में कभी नहीं। इसलिए कर्म को फल की इच्छा से मत करो, और न ही कर्म न करने में तुम्हारी आसक्ति हो।